Sunday 25 May 2014

हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम 
वो कत्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता। 
गुजरात पुलिस की न्यायप्रियता - 


निर्दोष मोहम्मद सलीम को गिरफ्तार कर गुजरात पुलिस ने उसे दिये थे 3 पर्याय...
1- वह कबूल कर ले की वह अक्षरधाम पर आक्रमण मे शामिल था। 
2- वह कबूल कर ले की वह हरेन पण्ड्या मर्डर मे शामिल था ।
3- वह कबूल कर ले की वह गोंधरा ट्रेन जलाने मे शामिल था । 

अंत में मोहम्मद सलीम पर अक्षरधाम मंदिर पर हुए आतंकी हमले में शामिल बता कर उस पर पोटा  लगा
कर उसे जेल भेज दिया गया.  
मोहम्मद सलीम और उनके 5 साथियों को सुप्रीम कोर्ट ने 16 मई को जिस दिन पूरे हिंदुस्तान मे बीजेपी और मोदी की जीत के डंके बज़ रहे थे बाईज्जत बरी कर दिया। 

इनमे से 4 आरोपी पिछले 10 साल से जेल मे थे। 
सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री और गृह मंत्री मोदी को दिमाग इस्तेमाल करने की सलाह दी। 


गुजरात पुलिस के इस व्यवहार पर मुझे मेरे एक मित्र द्वारा कहा गया एक जोक  याद आया।  
उप्र , महाराष्ट्र और गुज़रात की पुलिस में कौन सी पुलिस सबसे बहादुर है यह जानने के लिए एक प्रतियोगिता रखी गयी।  एक घनघोर जंगल में तीन शेर तीन दिशाओं की तरफ छोड़ते हुए तीनो राज्यों की पुलिस से कहा गया की जो बताये गए शेर को सबसे पहले पकड़ लेगा वह सर्वश्रेष्ठ पुलिस दल कहा जाएगा. 
तीनो राज्यों के पुलिस दल रवाना हुए।  करीब दो घंटे बाद महाराष्ट्र का पुलिस दल अपने शेर को पिंजड़े में कैद कर खींचते हुए वापस आया।  
उसके लगभग १ घंटे बाद उप्र  का पुलिस दल बताये गए शेर की लाश के साथ वापस लौटा।  पूंछने पर उन्होंने कहा की साहब हमने सोचा की पकड़ने के चक्कर में कौन समय नष्ट करे सो हमने शेर को गोली मार दी।  रिपोर्ट बना दी है की ससुरा आदमखोर हो गया था।  
शाम तक जब गुज़रात का पुलिस दल वापस नहीं लौटा तो सभी उन्हें ढूंढने जंगल में गये।  वहा देखा की गुज़रात पुलिस ने एक लंगूर को पेड़ से बाँध रखा है और उसकी पिटाई कर रहे थे।  वे लंगूर से कह रहे थे की तू कबूल कर ले की तू शेर है नहीं तो तेरा एनकाउंटर कर देंगे।  
'नमन'

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