2014 के आम चुनाव और उनके परिणाम
पिछले लगभग एक दशक से विभिन्न मंचों से लगातार मै यह कहता आ रहा हूँ की भारत मे 2014 या उसके बाद के आम चुनाव मे सरकार का चुनाव भारतीय जनता नहीं करेगी, बल्कि कुछ गिने चुने उद्योगपति करेंगे।
इन आम चुनाओं मे मेरी बात सच साबित हुयी। चुनावो का यह अमेरिकी माडल है।
मैंने इसके पीछे के कारण भी लगातार सबके सामने रखे थे। मैंने राजनैतिक पार्टियों के पुरोधाओं को भी इस खतरे से लगातार आगाह किया था। आज इलेक्ट्रोनिक मीडिया और प्रिंट मीडिया के सारे सूत्र परोक्ष या अपरोक्ष रूप से उद्योगपतियों के पास हैं। इनमे इलेक्ट्रोनिक मीडिया भारत की अर्धशिक्षित जनता को सबसे जादा प्रभावित करता है। यह माध्यम नायक को खलनायक और खलनायक को नायक बनाने की क्षमता रखता है।
कांग्रेस की किसान, गरीब और ग्रामीण भारत के उत्थान की कार्यशैली से उद्योग जगत पिछले लगभग 5-7 सालों से परेशान रहा है।
1947 से अब तक भारतीय उद्योगों को लगभग 100लाख करोड़ के कर्ज़ माफ करने वाली कांग्रेस सरकार पहली बार 2008 मे जैसे ही भारतीय किसानो के मात्र 70 हज़ार करोड़ माफ करती है उद्योगपतियों के कान खड़े हो जाते हैं।
मनरेगा मे गावों के विकास के लिए हर साल दी जाने वाली लाखों करोड़ की राशि उद्योग जगत के गले नहीं उतर रही । उद्योग जगत को लगता है की इससे भारतीय अर्थ व्यवस्था पर पड़ने वाले बोझ से भारत की अर्थव्यवस्था चरमरा जाएगी।
ग्रामीण मजदूर को साल मे 100 दिनों के काम की गारंटी के कारण गाँव से शहर आने वालों की संख्या मे भारी कमी आई है। आज बड़े शहरों मे मजदूर नहीं मिलने से कितनी ही औद्योगिक इकाइयां बंद पड़ी हैं। 2004 मे मुंबई जैसे शहरों मे जहां 100 रु की दिहाड़ी पर मजदूर मिल जाते थे, वहीं आज 400 से 500 रु प्रति दिन देने पर भी मजदूर नहीं मिल रहे।
अन्न सुरक्षा अधिनियम ने तो जैसे भारतीय उद्योगपतियों और कांग्रेस के सबन्धों मे अंतिम कभी न भरने वाली दरार पैदा कर दी। इस योजना से सरकार पर प्रति वर्ष लगभग सवा लाख करोड़ का बोझ बढ़ेगा । रत्न टाटा जैसा व्यक्ति भी बिल-बिलाकर कांग्रेस के खिलाफ बोल पड़ा।
इन सभी कारणो से भारतीय उद्योग जगत ने पिछले लगभग 4 साल से कांग्रेस का विकल्प तलाशना शुरू कर दिया था। 2002 के दंगों के लिए जिन मोदी की भर्त्सना सारे उद्योग जगत ने की थी उन्हे धीरे धीरे नरेंद्र मोदी अच्छे लगने लगे । जो उद्योगपति गुजरात मे नए उद्योग लगाने को तैयार न थे वे मोदी की नीतियों के बखान मे खुद को धन्य समझने लगे।
बड़े आद्योगिक घराने मोदी के पीछे संगठित हो गए थे। उन्हे कांग्रेस के खिलाफ एक मोहरा मिल गया था । जिसे इलेक्ट्रोनिक मीडिया और प्रिंट मीडिया के माध्यम से चमकाने का काम शुरू था। आज सारा मीडिया या तो औद्योगिक घरानों की संपत्ति है या बड़े औद्योगिक घरानो के द्वारा पोषित है। विज्ञापन मीडिया की आय का सबसे बड़ा साधन हैं और ये विज्ञापन इन्ही औद्योगिक घरानो से इन्हे मिलते हैं।
मोदी का नाम लिए बगैर कांग्रेस सरकार की कमियों को बढ़ा चढ़ा कर पेश करने और कांग्रेस के खिलाफ जनमत बनाने का काम शुरू हो चुका था । निर्भया बलात्कार कांड, और राम लीला मैदान पर अन्ना हज़ारे के जन लोकपाल आंदोलन और भ्रष्टाचार विरोधी अनशन को इसी योजना के अंतर्गत प्रचार माध्यमों द्वारा अधिक से अधिक प्रसिद्धि दिलाई गयी।
इन दो आंदोलनो से कांग्रेस बैक फूट पर आ गई थी । उसे समझ मे नहीं आ रहा था की क्या करें। इसी समय CAG ने कोयला खानो के आबंटन मे सरकार को लगभग 1लाख 70 हज़ार करोड़ का नुकसान होने की बात कही और उद्योग पतियों के धन पर पनप रहे प्रचार माध्यमों ने ऐसे प्रचार किया की कांग्रेस नेताओं ने 1लाख 70 हज़ार करोड़ रु का भ्रष्टाचार किया है। एक तरफ CAG द्वारा गुजरात सरकार पर लगाए गए इसी तरह के लगभग 1लाख करोड़ के राज्य सरकार के नुकसान पर मीडिया मोदी के नाम की तक चर्चा तक नहीं करता दूसरी ओर मीडिया कांग्रेस नेताओं को कटघरे मे खड़ा कर देता है।
ऐसा नहीं था की कांग्रेस को इसका पता नहीं था। PMO और मनमोहन सिंह के खासमखास मंत्रियों को इसका पता था। पर वे भी इन्ही उद्योगपतियों के हाथो की कठपुतली बनते गए। कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी को जान बूझ कर अंधेरे मे रखने का काम किया गया। एक तरफ राहुल गांधी संगठन विशेषकर युवक कांग्रेस और NSUI के पुनर्गठन मे लगे थे दूसरी तरफ कांग्रेस के कदमों के नीचे से ज़मीन खिसक रही थी।
अब मोदी को राष्ट्रीय राजनीति मे लाने की ज़मीन तैयार हो चुकी थी। इन औद्योगिक घरानो ने बीजेपी और आरएसएस के वरिष्ठ नेताओं से साफ साफ कह दिया की अगर मोदी को आप अपना प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करते हो तभी हम आपका साथ देंगे।
औद्योगिक घरानो के दबाव मे बीजेपी ने मोदी को गोवा मे प्रधान मंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया। अब सारे इलेक्ट्रोनिक प्रचार माध्यम और प्रिंट मीडिया खुल कर मोदी के समर्थन मे आ गए, और 'येन केन प्रकारेण' मोदी की सबसे मजबूत, सबसे अच्छा , सबसे भरोसे मंद नेता साबित करने मे रात दिन एक कर दिया। अब यह लड़ाई बीजेपी विरुद्ध कांग्रेस नहीं रह गयी थी। यह भारत के औद्योगिक घरानो के प्रतिनिधि मोदी विरुद्ध कांग्रेस हो गई थी । वोट बीजेपी के लिए नहीं मोदी के लिए मांगे जा रहे थे।
इस तरफ कांग्रेस मे प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह और उनके निकट के सहयोगियों को यह अच्छी तरह से पता था की कांग्रेस की लुटिया डूब रही है। IB जैसे संगठनो ने कांग्रेस के खिलाफ पूरे देश मे जो गुस्सा है उसकी जानकारी PMO को दे दी थी ।
अब राहुल गांधी को बलि का बकरा बनाने की कवायद कांग्रेस के कुछ बड़े नेताओं ने शुरू की। यह सब PMO की जानकारी मे हो रहा था। 10 वर्ष सत्ता भोग चुके ये नेता चाहते थे की इसी बहाने राहुल गांधी को एक कमजोर नेता साबित करे ताकि भविष्य मे भी वे कांग्रेस को मनमाने ढंग से चला सकें। अगर राहुल गांधी एक मजबूत नेता की तरह उभरते तो इन नेताओं को अपना भविष्य अंधकारमय दिखाई दे रहा था।
इसी कवायद की तहत राहुल गांधी को कांग्रेस का उपाध्यक्ष बना कर उनके हाथ मे आम चुनाव की बागडोर दे दी गयी। मनमोहन सिंह और उनके निकटस्थ सहयोगियों ने अपने उद्योगपति मित्रों की अपरोक्ष रूप से सहायता की।
आम चुनाओं मे मोदी की यह जीत असलियत मे भारत के उद्योग जगत की जीत है। यह पहला आम चुनाव है जिसमे एक तरफ भारतीय किसान, मजदूर और भारत के गाँव के विकास की प्रतिनिधि कांग्रेस थी और दूसरी तरफ भारतीय उद्योग जगत के प्रतिनिधि मोदी थे।
यह राउंड भारतीय उद्योग जगत ने जीता।
आने वाले आम चुनाओं का एजेंडा अभी से निश्चित है। अगले आम चुनाव भी किसान और मजदूर और भारत के औद्योगिक घरानो के बीच ही होंगे ।
आपका,
ॐ प्रकाश(मुन्ना) पांडे 'नमन'
कल्याण , मुबई ।
पिछले लगभग एक दशक से विभिन्न मंचों से लगातार मै यह कहता आ रहा हूँ की भारत मे 2014 या उसके बाद के आम चुनाव मे सरकार का चुनाव भारतीय जनता नहीं करेगी, बल्कि कुछ गिने चुने उद्योगपति करेंगे।
इन आम चुनाओं मे मेरी बात सच साबित हुयी। चुनावो का यह अमेरिकी माडल है।
मैंने इसके पीछे के कारण भी लगातार सबके सामने रखे थे। मैंने राजनैतिक पार्टियों के पुरोधाओं को भी इस खतरे से लगातार आगाह किया था। आज इलेक्ट्रोनिक मीडिया और प्रिंट मीडिया के सारे सूत्र परोक्ष या अपरोक्ष रूप से उद्योगपतियों के पास हैं। इनमे इलेक्ट्रोनिक मीडिया भारत की अर्धशिक्षित जनता को सबसे जादा प्रभावित करता है। यह माध्यम नायक को खलनायक और खलनायक को नायक बनाने की क्षमता रखता है।
कांग्रेस की किसान, गरीब और ग्रामीण भारत के उत्थान की कार्यशैली से उद्योग जगत पिछले लगभग 5-7 सालों से परेशान रहा है।
1947 से अब तक भारतीय उद्योगों को लगभग 100लाख करोड़ के कर्ज़ माफ करने वाली कांग्रेस सरकार पहली बार 2008 मे जैसे ही भारतीय किसानो के मात्र 70 हज़ार करोड़ माफ करती है उद्योगपतियों के कान खड़े हो जाते हैं।
मनरेगा मे गावों के विकास के लिए हर साल दी जाने वाली लाखों करोड़ की राशि उद्योग जगत के गले नहीं उतर रही । उद्योग जगत को लगता है की इससे भारतीय अर्थ व्यवस्था पर पड़ने वाले बोझ से भारत की अर्थव्यवस्था चरमरा जाएगी।
ग्रामीण मजदूर को साल मे 100 दिनों के काम की गारंटी के कारण गाँव से शहर आने वालों की संख्या मे भारी कमी आई है। आज बड़े शहरों मे मजदूर नहीं मिलने से कितनी ही औद्योगिक इकाइयां बंद पड़ी हैं। 2004 मे मुंबई जैसे शहरों मे जहां 100 रु की दिहाड़ी पर मजदूर मिल जाते थे, वहीं आज 400 से 500 रु प्रति दिन देने पर भी मजदूर नहीं मिल रहे।
अन्न सुरक्षा अधिनियम ने तो जैसे भारतीय उद्योगपतियों और कांग्रेस के सबन्धों मे अंतिम कभी न भरने वाली दरार पैदा कर दी। इस योजना से सरकार पर प्रति वर्ष लगभग सवा लाख करोड़ का बोझ बढ़ेगा । रत्न टाटा जैसा व्यक्ति भी बिल-बिलाकर कांग्रेस के खिलाफ बोल पड़ा।
इन सभी कारणो से भारतीय उद्योग जगत ने पिछले लगभग 4 साल से कांग्रेस का विकल्प तलाशना शुरू कर दिया था। 2002 के दंगों के लिए जिन मोदी की भर्त्सना सारे उद्योग जगत ने की थी उन्हे धीरे धीरे नरेंद्र मोदी अच्छे लगने लगे । जो उद्योगपति गुजरात मे नए उद्योग लगाने को तैयार न थे वे मोदी की नीतियों के बखान मे खुद को धन्य समझने लगे।
बड़े आद्योगिक घराने मोदी के पीछे संगठित हो गए थे। उन्हे कांग्रेस के खिलाफ एक मोहरा मिल गया था । जिसे इलेक्ट्रोनिक मीडिया और प्रिंट मीडिया के माध्यम से चमकाने का काम शुरू था। आज सारा मीडिया या तो औद्योगिक घरानों की संपत्ति है या बड़े औद्योगिक घरानो के द्वारा पोषित है। विज्ञापन मीडिया की आय का सबसे बड़ा साधन हैं और ये विज्ञापन इन्ही औद्योगिक घरानो से इन्हे मिलते हैं।
मोदी का नाम लिए बगैर कांग्रेस सरकार की कमियों को बढ़ा चढ़ा कर पेश करने और कांग्रेस के खिलाफ जनमत बनाने का काम शुरू हो चुका था । निर्भया बलात्कार कांड, और राम लीला मैदान पर अन्ना हज़ारे के जन लोकपाल आंदोलन और भ्रष्टाचार विरोधी अनशन को इसी योजना के अंतर्गत प्रचार माध्यमों द्वारा अधिक से अधिक प्रसिद्धि दिलाई गयी।
इन दो आंदोलनो से कांग्रेस बैक फूट पर आ गई थी । उसे समझ मे नहीं आ रहा था की क्या करें। इसी समय CAG ने कोयला खानो के आबंटन मे सरकार को लगभग 1लाख 70 हज़ार करोड़ का नुकसान होने की बात कही और उद्योग पतियों के धन पर पनप रहे प्रचार माध्यमों ने ऐसे प्रचार किया की कांग्रेस नेताओं ने 1लाख 70 हज़ार करोड़ रु का भ्रष्टाचार किया है। एक तरफ CAG द्वारा गुजरात सरकार पर लगाए गए इसी तरह के लगभग 1लाख करोड़ के राज्य सरकार के नुकसान पर मीडिया मोदी के नाम की तक चर्चा तक नहीं करता दूसरी ओर मीडिया कांग्रेस नेताओं को कटघरे मे खड़ा कर देता है।
ऐसा नहीं था की कांग्रेस को इसका पता नहीं था। PMO और मनमोहन सिंह के खासमखास मंत्रियों को इसका पता था। पर वे भी इन्ही उद्योगपतियों के हाथो की कठपुतली बनते गए। कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी को जान बूझ कर अंधेरे मे रखने का काम किया गया। एक तरफ राहुल गांधी संगठन विशेषकर युवक कांग्रेस और NSUI के पुनर्गठन मे लगे थे दूसरी तरफ कांग्रेस के कदमों के नीचे से ज़मीन खिसक रही थी।
अब मोदी को राष्ट्रीय राजनीति मे लाने की ज़मीन तैयार हो चुकी थी। इन औद्योगिक घरानो ने बीजेपी और आरएसएस के वरिष्ठ नेताओं से साफ साफ कह दिया की अगर मोदी को आप अपना प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करते हो तभी हम आपका साथ देंगे।
औद्योगिक घरानो के दबाव मे बीजेपी ने मोदी को गोवा मे प्रधान मंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया। अब सारे इलेक्ट्रोनिक प्रचार माध्यम और प्रिंट मीडिया खुल कर मोदी के समर्थन मे आ गए, और 'येन केन प्रकारेण' मोदी की सबसे मजबूत, सबसे अच्छा , सबसे भरोसे मंद नेता साबित करने मे रात दिन एक कर दिया। अब यह लड़ाई बीजेपी विरुद्ध कांग्रेस नहीं रह गयी थी। यह भारत के औद्योगिक घरानो के प्रतिनिधि मोदी विरुद्ध कांग्रेस हो गई थी । वोट बीजेपी के लिए नहीं मोदी के लिए मांगे जा रहे थे।
इस तरफ कांग्रेस मे प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह और उनके निकट के सहयोगियों को यह अच्छी तरह से पता था की कांग्रेस की लुटिया डूब रही है। IB जैसे संगठनो ने कांग्रेस के खिलाफ पूरे देश मे जो गुस्सा है उसकी जानकारी PMO को दे दी थी ।
अब राहुल गांधी को बलि का बकरा बनाने की कवायद कांग्रेस के कुछ बड़े नेताओं ने शुरू की। यह सब PMO की जानकारी मे हो रहा था। 10 वर्ष सत्ता भोग चुके ये नेता चाहते थे की इसी बहाने राहुल गांधी को एक कमजोर नेता साबित करे ताकि भविष्य मे भी वे कांग्रेस को मनमाने ढंग से चला सकें। अगर राहुल गांधी एक मजबूत नेता की तरह उभरते तो इन नेताओं को अपना भविष्य अंधकारमय दिखाई दे रहा था।
इसी कवायद की तहत राहुल गांधी को कांग्रेस का उपाध्यक्ष बना कर उनके हाथ मे आम चुनाव की बागडोर दे दी गयी। मनमोहन सिंह और उनके निकटस्थ सहयोगियों ने अपने उद्योगपति मित्रों की अपरोक्ष रूप से सहायता की।
आम चुनाओं मे मोदी की यह जीत असलियत मे भारत के उद्योग जगत की जीत है। यह पहला आम चुनाव है जिसमे एक तरफ भारतीय किसान, मजदूर और भारत के गाँव के विकास की प्रतिनिधि कांग्रेस थी और दूसरी तरफ भारतीय उद्योग जगत के प्रतिनिधि मोदी थे।
यह राउंड भारतीय उद्योग जगत ने जीता।
आने वाले आम चुनाओं का एजेंडा अभी से निश्चित है। अगले आम चुनाव भी किसान और मजदूर और भारत के औद्योगिक घरानो के बीच ही होंगे ।
आपका,
ॐ प्रकाश(मुन्ना) पांडे 'नमन'
कल्याण , मुबई ।
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