Sunday 2 March 2014

सार्वजनिक जीवन मे भ्रष्टाचार का सच...?

सार्वजनिक जीवन मे भ्रष्टाचार का सच...?
आज हम सब के सब भ्रष्टाचार से परेशान हैं। भ्रष्टाचार का घुन पूरे सरकारी और गैरसरकारी तंत्र मे व्याप्त है। सभी राजनैतिक पार्टियां भ्रष्टाचार से लड़ने का दावा करती हैं, पर इनमे ईमानदार कोशिश का अभाव दिखाई देता है। स्वतन्त्रता से अब तक अलग अलग दशको मे भ्रष्टाचार से लड़ने की छुट-पुट कोशिशें होती रही हैं। विभिन्न सरकारी विभागों मे Vigilance department बनाने से लेकर Anti Corruption Bureau और CBI तक इसी राक्षस से लड़ने के लिए बनाए गए। हर कोशिश के बाद भ्रष्टाचार बढ़ा। पंडित नेहरू के समय 2% भ्रष्टाचार के किस्से सुनने को मिलते थे। उस समय जिस नेता पर भ्रष्टाचार का आरोप लगता था वह राजनीति मे अछूत मान लिया जाता था।
यह वही काल था की पटवारियों और कानूनगो वगैरह से सख्ती से निपटने के कारण चौधरी चरण सिंह उत्तर प्रदेश के हीरो बन गए थे। 1974-75 मे भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के पुरोधा जयप्रकाश नारायण ने कभी स्वप्न मे भी नहीं सोचा था की उनके सिपहसालार जब 1977 मे सत्ता मे आएंगे तो कुर्सी मिलते ही गिरगिट की तरह रंग बदलेंगे और भ्रष्टाचार मे आकंठ डूब जाएंगे।
सार्वजनिक जीवन मे भ्रष्टाचार के रावण धीरे धीरे विकराल रूप लेता चला गया। 1947 से 1975 का काल वह समय था जब अधिकांश बड़े नेता स्वतन्त्रता आंदोलन मे तपे हुये लोग थे। उनके लिए देश हित सर्वोपरि था। इस काल-खंड की राजनीति मे कांग्रेस सहित सभी पार्टियों के एक्का दुक्का नेता ही भ्रष्ट थे। हाँ, सरकारी अधिकारियों मे भ्रष्टाचार का प्रतिशत तेजी से बढ़ रहा था। भाई-भतीजावाद की चर्चा राजनैतिक हलक़ों मे आम हो गयी थी। चारित्रिक गिरावट का यह क्रम लगातार जारी रहा। ईमानदार नेता धीरे धीरे देश के राजनैतिक पटल से गायब होते चले गए।
1977 मे बनी जनता पार्टी की सरकार के लगभग 2 वर्षों मे ही गिर जाने और पुनः सत्ता मे चुन कर आई इंदिरा गांधी द्वारा सभी राज्यों की सरकारों को बर्खास्त कर पुनः चुनाव कराये जाने के कारण पैदा हुयी राजनैतिक अस्थिरता और नेताओं की नयी पौध मे उपजी आर्थिक और राजनैतिक असुरक्षा की भावना के कारण नेताओं मे व्याप्त भ्रष्टाचार का यह प्रतिशत 1980 का दशक आते आते कूद कर 50% के आसपास पहुँच गया।
आज सभी राजनैतिक दलों के लाभ के पदों पर बैठे लगभग 75% नेता भ्रष्ट हैं। अब लोग राजनीति मे सेवा के लिए नहीं बल्कि निजी स्वार्थ का मेवा हजम करने के लिए आते हैं। राजनीति अब व्यवसाय बन गई है। इस व्यावसायिक राजनीति के लिए सभी पार्टियों का शीर्ष नेतृत्व जिम्मेदार है। ऐसे मे देश की तीन बड़ी पार्टियों कांग्रेस, बीजेपी और कम्युनिस्ट पार्टियों का ये नैतिक दायित्व बनता है की इस राजनैतिक गंदगी की सफाई की अगुवाई करें।
जब तक ये पार्टियां अपने पार्टी तंत्र मे फल फूल रहे भ्रष्ट नेताओं को राजनैतिक वनवास पर नहीं भेजेंगी तब तक कोई लोकपाल या लोकायुक्त भ्रष्टाचार को खत्म नहीं कर सकता। अपनी ज्ञात आय से अधिक खर्च करने वाले नेताओं की जानकारी सबके पास है। किन नेताओं के बच्चे रोज लाखों रु खर्च कर रहे हैं क्या सबको नहीं पता? कैसे कोई नेता पुत्र करोड़ो की गाड़ी मे सफर करता है? कैसे नेताओं की पौत्रियों की शादी मे करोड़ो खर्च किए जाते हैं? कैसे सब्जी बेच कर राजनैतिक जीवन शुरू करने वाला नेता हजारों करोड़ का मालिक बन जाता है ? कैसे लोग प्रायवेट जेट मे चलने लगते हैं? कैसे नेता लाखों के डिजाइनर कपड़े पहनने लगता है? कैसे नेता 5सितारा होटल मे रुकने लगता है? ये सब जानते हैं, पर सब चुप हैं, सब एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं।
परंतु एक बड़ा सच और भी है और वह है इन नेताओं के भ्रष्टाचार मे सबसे बड़ा सहायक IAS अफसर। ये हमारे देश को नुकसान पहुचाने वाली वह बिरादरी है जिस पर कोई अंगुली नहीं उठाता। यह वह निकृष्ट बिरादरी है जो खटमलों की तरह हमारा खून चूस रही है। IAS बिरादरी की मिली भगत के बिना कोई नेता भ्रष्टाचार नहीं कर सकता। हमने इन खटमलों को छूट दे रखी है की देश को लूटें, खसोटें, खोखला करे। ये बिरादरी देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ करती है, रक्षा सौदों तक मे ये दलाली लेने से बाज़ नहीं आते। इन अफसरों के खिलाफ कोई मीडिया आवाज़ नहीं उठाता, कोई कवि इनके खिलाफ कविता नहीं करता, कोई नेता इनके खिलाफ मुंह नहीं खोलता।
इस organized Corruption से कोई आम आदमी नहीं लड़ सकता। भ्रष्टाचार के इस रावण से लड़ने की क्षमता और इच्छा शक्ति मुझे वर्तमान नताओं मे सिर्फ राहुल गांधी मे नज़र आती है। बीजेपी के नेता मोदी को झूठ बोलने और भ्रम फैलाने मे महारत हासिल है। जिस व्यक्ति मे सही और गलत की तमीज़ नहीं हो, जो व्यक्ति वैचारिक रूप से खोखला हो और अपनी बातचीत मे गटर की भाषा का इस्तेमाल करता हो, उसमे मुझे कोई भविष्य नहीं दिखाई पड़ता। मुझे देखना है की भ्रष्टाचार के खिलाफ इस युद्ध मे कौन आगे आता है? बड़बोले केजरीवाल और अन्य क्षेत्रीय नेताओं मे मुझे कोई संभावना नज़र नहीं आती है। -- ‘नमन’ 

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