तुम
बहुत चालाक हो तुम
और सुंदर भी
जब भी सोचता हूँ
तो पाता हूँ
पूर्ण स्त्री हो तुम......
मैं जोड़ता रहा तुम्हारे
लिए
कभी हार तो कभी कंगन
कभी करधनी तो कभी बाजू बंद
कभी पाजेब तो कभी लच्छे
कभी नथिया तो कभी बिछुवा
और तुम
तोड़ती रही मेरा दिल
कभी ताने तो
कभी उलाहने देकर ....
मैं बनवाता रहा
तुम्हारे लिए
कभी हसुली तो कभी झुलनी
कभी कुंडल तो कभी झुमके
कभी चूड़ी तो कभी ढरका
कभी काँटा तो कभी मांग टीका
और तुम
फुफकारती रही
नागिन सी
पलट पलट कर .....
मैं खरीदता रहा
तुम्हारे लिए
हीरे और प्लैटिनम की अंगूठी
मोतियों के हार, सोने की सिकड़ी
कभी बाली तो कभी फोंफी
कभी मंगलसूत्र तो कभी झाला
और तुम
करती रही तकरार
न मानी प्यार से
न तो मनुहार से
जब भी सोचता हूँ
तो पाता हूँ
पूर्ण स्त्री हो तुम.........
‘नमन’
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