गजल
उसे बनना संवरना आ गया है
हमे तारीफ करना आ गया है।
वो पहले भी कयामत ढा रहे थे
उसे अब कत्ल करना आ गया है।
हमारे घाव अब रिसने लगे हैं
उसे आँसू बहाना आ गया है।
छिपाते थे जो आस्तीन मे खंजर
उन्हे लाशें बिछाना आ गया है।
सियासतदाँ नहीं अब काम करते
उन्हे बातें बनाना आ गया है।
ये जनता है बहुत कुछ जानती है
उसे सबक सिखाना आ गया है।
है कौन अपना, पराया कौन यहाँ
हमे अब फर्क करना आ गया है।
‘नमन’
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