प्यार लिखता मिटाता जा रहा हूँ
मैं खुद को आजमाता जा रहा हूँ।
यहाँ कुछ लोग हैं दुश्मन वफा के
उन्हे अपना बनाता जा रहा हूँ।
कहीं भी हूँ किसी भी हाल मे हूँ
मैं अपने गीत गाता जा रहा हूँ।
शिकायत है नहीं मुझको किसी से
खुदी पर सितम ढ़ाता जा रहा हूँ।
मोहब्बत पर लगी पाबन्दियाँ है
मैं नफरत को मिटाता जा रहा हूँ।
‘नमन’
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चाँद फिर मुस्कराने लगा है
हमपे बिजली गिराने लगा है।
आज होकर बे-काबू मेरा दिल
अपने कातिल पे आने लगा है।
की खता उससे नज़रें मिला ली
वो हृदय मे समाने लगा है।
ले के अंगड़ाइयाँ वो सितमगर
मेरा सब्र आज़माने लगा है। 'नमन'
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