Friday, 18 October 2013

AADHI JEET








आदरणीय श्री अन्ना हज़ारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की पृष्ठभूमि पर लिखे गए राजनैतिक उपन्यास 'आधी जीत ' से यह कविता ली गई है ...

सन्नाटा फैला था
चारों तरफ
कोई हलचल नहीं
कोई आवाज नहीं
कान थे सुन्न
मानों बहरे हों
जैसे मुर्दा हो
इस देश का हर गांव-शहर
कोई आहट नहीं
कोई तूफान नहीं
सभी सोये थे
निश्चिंत से अलसाये हुए
और फिर वो हुआ
जो किसी ने
सोचा भी न था
एक तूफान उठा
एक जलजला आया
हिल गई चूलें
व्यवस्था कांप उठी
उठ के देखा जो
वो समझ से बाहर है
एक छोटा सा इंसान
और उसका
हिमालय छूता हुआ कद
असम से गुजरात तक
फैली उसकी बाहें
सह्याद्रि सी मजबूत
उसकी रीढ़
सिर पर उसके
सज रही है गांधी टोपी
उसने गांधी को
माथे पे सजा रखा है
और ये आवाज है उनकी
जिनकी आवाज न थी
जाग उठा है
हिंदुस्तान का हर गांव-शहर
सबके हाथों में है
तिरंगे लहराते हुए
नवजवानों ने उसे
सीने पर सजा रखा है
सबकी आखों में है
दीवानगी कुछ करने की
उठे हैं लाखों सिर
लाखों भुजाएं उठी
नप गया देश का
हर कोना उनके कदमों तले
एक आवाज उठी
भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ
जिसकी गूंज से
हिल गया सत्ता का आसन
हिल गए वो
जिन्होंने पैसे को
अपना ईमान बना रखा है
कौन है ये?
जो यै फौज लिए आया है
न कोई हथियार है
न लाठी है
न पत्थर ही कोई
फिर भी सिपाही हैं
ये सबके सब
आवाज इतनी बुलंद है
कि सुनी जाती है
कश्मीर से कन्याकुमारी तक
साफ-साफ
इनके हथियार हैं फेसबुक, एसएमएस,
ट्विटर और ई-मेल
जिन पर सवार हैं
वे विचार और भावनाएं
जिन्होंने आम आदमी को
दीवाना बना रखा है।
जिन्होंने आम आदमी को
दीवाना बना रखा है।
'नमन'
 

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