“जननी जन्मभुमिश्च,स्वर्गादपि गरीयसि”
मर्यादा
पुरषोत्तम राम ने अपनी जन्मभूमि को याद करते हुये कहा था “जननी जन्मभुमिश्च,स्वर्गादपि गरीयसि”। राम सिर्फ हिंदुओं के आराध्य नहीं
हैं,
राम पूरी भारतीय चेतना के प्रतीक हैं। राम एक पूरी की पूरी संस्कृति हैं, जिनका जीवन सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है- त्याग , बलिदान, पराक्रम , संयम, निष्ठा और प्रेम का।
जब वे कहते
हैं की मुझे मेरी मातृभूमि स्वर्ग से भी अधिक प्रिय है तब वे राष्ट्र –प्रेम का
उदाहरण प्रस्तुत करते हैं हम सबके लिए। हिन्दू, जिस राम को परमपिता
परमात्मा मानते हैं, वे अगर उनकी ये बात समझ ले की देश
सर्वोपरि है, देश हित सर्वोपरि है, तब
हिंदुस्तान को स्वर्ग बनते देर नहीं लगेगी।
मैं कहता
रहा हूँ-
“ यही है
मेरा देश मुझको यकीन है ,
धरा पर अगर
स्वर्ग है तो यहीं है”।
राम
हिंदुस्तान के प्रतीक पुरुष हैं, तभी डॉ इकबाल ने राम के लिए कहा, ‘ है राम के वजूद पर हिंदोस्तान को नाज़....’
हमारे राम
पराक्रमी तो हैं पर प्रेम के भी प्रतीक हैं। अपने जीवन मे राम ने उत्कृष्ट प्रेम
के जो उदाहरण प्रस्तुत किए हैं वे अनुकरणीय हैं। राम अपने माँ-पिता से तो प्रेम
करते ही हैं, उस सौतेली माँ से अनन्य प्रेम करते हैं जो उन्हे 14 वर्ष के लिए वनवास दे
देती हैं। उन राम को सीता माता तो प्रिय थी ही, पर जब
लक्ष्मण को शक्ति लगती है और वे आहत होकर बेहोश हो जाते हैं,
उस समय राम के भ्रातृ प्रेम की झलक अतुलनीय है। वे कहते हैं,
“जौ जनतेऊँ
बन बंधु बिछोहु। पिता बचन मनतेऊ नहिं ओहू”॥
राम त्याग
के भी प्रतीक हैं, वे राज्य और सत्ता पर अपना हक सहज ही छोड़ कर वनवास
ले लेते हैं। राम बलिदान के भी प्रतीक हैं, वे एक धोबी की
टिप्पणी पर अपना राज धर्म निभाने के लिए, उदाहरण प्रस्तुत
करने के लिए सीता माँ का विछोह भी सहन करने के लिए तैयार हैं।
परंतु उनही मर्यादा
पुरुषोत्तम राम के नाम पर आज की राजनैतिक बिरादरी क्या कर रही है यह एक शोचनीय विषय
है। राम के नाम का, राम जन्म भूमि के नाम से घृणा फैलाने का काम पिछले लगभग 3 दशकों से
बदस्तूर जारी है। मैंने मेरे सन 2004 मे प्रकाशित काव्य संग्रह मे राम को संबोधित करने
का प्रयास किया था....
राम! तुम ‘राम’ नहीं रहे।
तुम! जो रमते
थे लोगों के मन में
तुम! जो महँकते
थे साँसों मे
तुम! जो बसते
थे कण-कण मे
ये कहाँ आकर
रुक गए राम ?
राम! तुम ‘राम’ नहीं रहे।
तुम! जो आत्मा
थे हमारी संस्कृति की
तुम! जो परमात्मा
थे हिन्दू मानस के
तुम! जो इष्ट
थे महात्मा गांधी के
ये किसके होकर
रह गए राम ?
राम! तुम ‘राम’ नहीं रहे।
तुम! जो सबमे
स्थित होकर भी सबसे परे थे
तुम! जो बंधकर
भी अबाधित थे
तुम! जो राम
थे तुलसी के मानस के
ये कहाँ आकर
फंस गए हो राम?
राम! तुम ‘राम’ नहीं रहे।
तुम! जो रक्षक
थे निर्बलों के , शोषितों के
तुम! जो उद्धारक
थे पापियों के, शापितों के
तुम! जो प्रवर्तक
थे राम राज्य के
तुम! क्या थे
, क्या
हो गए राम?
राम! तुम ‘राम’ नहीं रहे।
तुम! जो अपनों
के लिए छोड़ गए थे अयोध्या
तुम! जो हक के
लिए नहीं लड़े भाई से
तुम! जो कैकेई
पुत्र भरत को, राम भक्त भरत बना गए
तुम! क्या थे, क्या हो गए राम?
राम! तुम ‘राम’ नहीं रहे।
तुम! जो नहीं
बंटे कबीर और तुलसी मे
तुम! जो नहिं
बंटे राम और रसखान
मे
तुम! जो परे
हो जन्म और मृत्यु के
ये कहाँ प्रकट
हो गए राम?
राम! तुम ‘राम’ नहीं रहे।
राम! तुम ‘राम’ नहीं रहे।
‘नमन’
ब्लॉग- www.namanbatkahi.blogspot.com
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