Tuesday 24 September 2013

ये प्रेम है – तुम्हारा प्रेम !

 
तुम!
आँखों मे क्या बसी
दिल ले उड़ी.....
तुम्हारे बिना
बचा ही क्या है ज़िंदगी मे .....
सूनी आँखें
सुदूर अन्तरिक्ष मे
खोजती रहती हैं तुम्हें....
खोखले सीने मे
दिल की जगह
भर गया है पानी
जो निकलता रहता है
गाहे – बगाहे
आँसू बन कर .....
पूनम के चाँद से भी
मन नहीं बहलता अब.....
न तो रात रानी की गंध ही
देती है सुकून ...
पुरवाई से खड़खड़ा उठते हैं
पीपल के पत्ते
और रात के सन्नाटे मे
दब जाती है मेरी चीख .....
पड़ते हैं पागलपन के दौरे
डॉ कहते हैं हिस्टीरिया है
ओझा कहते हैं कोई प्रेत है
सिर्फ मैं जनता हूँ
ये प्रेम है – तुम्हारा प्रेम ……
‘नमन’

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