Monday, 8 July 2013

यह अभिशप्त जनतंत्र है ...

गाँव के जमींदार ने
पटवारी और तहसीलदार से मिल कर
हथिया ली उसकी ज़मीन
वह गया था थाने
पर थानेदार की जूतों की ठोकर से
ऊपर न उठ सका ...
जिला कचहरी मे
हफ्तों पड़ा रहा वह
पर उसे न्याय तो क्या मिलता
हाकिम तक से मिलने नहीं दिया गया....
भूखा प्यासा लौटा वह
अपने घर
पर अब घर है कहाँ
वह तो जमींदार का हो गया है
और जोरू थानेदार की
जो उसे जबरन उठा ले गया है....
इस स्वतंत्र देश का
स्वतंत्र नागरिक वह
आज परम स्वतंत्र है
यह अभिशप्त जनतंत्र है.....
यह अभिशप्त जनतंत्र है .....

                          ‘नमन’

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