---कविता सी सुंदर---
कविता से भी वो सुंदर है
या फिर कविता सी सुंदर है।
वो है गुलाब इक खिला हुआ
या कि वो कोई कमल-दल है।
अधरों पर है मुस्कान अमर
आँखों मे उसके सपने हैं।
लगता है जो उससे मिलते
वो सारे उसके अपने हैं।
उससे मिल कर कुछ खोया है
उससे मिल कर कुछ पाया है।
वाणी मे कोयल सी मिठास
रस घोले है जो कानो मे ।
वो रंभा नहीं अचंभा है
जो थिरक रही मतवालों मे।
वो मेरा चाँद नहीं है पर
शायद सबका वो सपना है।
है मेरी गजल सी वो सुंदर
या फिर कविता सी सुंदर है।
‘नमन’
कविता से भी वो सुंदर है
या फिर कविता सी सुंदर है।
वो है गुलाब इक खिला हुआ
या कि वो कोई कमल-दल है।
अधरों पर है मुस्कान अमर
आँखों मे उसके सपने हैं।
लगता है जो उससे मिलते
वो सारे उसके अपने हैं।
उससे मिल कर कुछ खोया है
उससे मिल कर कुछ पाया है।
वाणी मे कोयल सी मिठास
रस घोले है जो कानो मे ।
वो रंभा नहीं अचंभा है
जो थिरक रही मतवालों मे।
वो मेरा चाँद नहीं है पर
शायद सबका वो सपना है।
है मेरी गजल सी वो सुंदर
या फिर कविता सी सुंदर है।
‘नमन’
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