Wednesday 10 July 2013

विकास का टायर भ्रष्ट

विकास का टायर भ्रष्ट 

हम आईने हैं, दिखाएंगे दाग चेहरों के
 

जिसे खराब लगे सामने से हट जाये ।

केंद्र सरकार की विकास की गाड़ी का टायर भ्रस्टाचार ने भ्रस्ट कर दिया है। भ्रस्टाचार का यह रावण इसके 


पहले कभी इतना हृष्ट- पुष्ट नहीं हुआ था। सुना है की आज कल इसका नाम सुनकर ही प्रधानमंत्री को 

पसीने आ जाते हैं। कुछ लोग तो यह भी कहते हैं की यह रावण प्रधानमंत्री कार्यालय मे ही पलथी मार कर 

बैठ गया है। बड़ी-बड़ी परियोजनाएं इसकी शिकार हो रही हैं।


यह व्यवस्था का रावण है। दस सिरों वाला यह दशानन कानून और व्यवस्था , रक्षा , न्यायपालिका , शिक्षा 

व्यापार , विदेश नीति , कृषि , उद्योग , वित्त और स्वास्थ्य विभागों के सर चढ़ कर बोल रहा है । इसके 

ये सिर जनतंत्र के मजबूत कंधों को लगातार खोखला कर रहे हैं। प्रधानमंत्रीजी अच्छे अर्थशास्त्री हैं पर बेहद 

कमजोर प्रशासक साबित हुये हैं। उनकी इस कमजोरी का खामियाजा समय-समय पर कांग्रेस को भुगतना 

पड़ा है। नीतियाँ और नीयत कितनी भी अच्छी हों, अगर उनका कार्यान्वयन ढंग से नहीं किया जाएगा तो वे 


किसी काम की नहीं। आज सरकार मे अच्छे समर्पित अधिकारियों का अकाल है। अधिकतर अधिकारी 

सिर्फ और सिर्फ पैसा कमाने की नीयत से केंद्र और राज्य के विभिन्न सरकारी एवं अर्धसरकारी विभागों मे 

कार्यरत हैं। ऐसे अक्षम और भ्रष्ट अधिकारियों से सुशासन की उम्मीद करना व्यर्थ है। प्रधानमंत्री कार्यालय 

भारत सरकार के हृदय और मस्तिष्क की तरह काम करता है, वहाँ की छोटी से छोटी बात पूरे देश पर 

असर डालती है। प्रधानमंत्री कार्यालय के लिए आदरणीय मनमोहन सिंग जी ने स्वयं चुन चुन कर 

अधिकारियों की नियुक्तियाँ की थी। उनमे से अधिकांश अधिकारी प्रधान मंत्री कार्यालय पर बोझ साबित 

हुये हैं , अक्षम साबित साबित हुये हैं। प्रधानमंत्री कार्यालय का दबदबा पिछले दशक मे जब श्री अटल 

बिहारी बाजपेयी प्रधानमंत्री थे तब से कम होना शुरू हुआ है और अब लगभग खत्म हो गया है। अब दूसरे 

विभागों के अधिकारी उसकी बात नहीं सुनते हैं।

सहयोगी राजनैतिक दलों का दबाव तंत्र भी कई बार सरकारों को गलत फैसले लेने पर मजबूर करता है। 

इनके दूरगामी परिणाम होते हैं। छोटे दलों के नेताओं की राजनैतिक महत्वाकांक्षा ने सुरसा की तरह मुंह 

फाड़ा हुआ है।

इन परिस्थियों मे प्रधानमंत्री कार्यालय को और अधिक सक्षम,ज़िम्मेवार और गतिशील बनाने की जरूरत 


है। एक अत्यंत जुझारू, समर्पित और द्रष्टा अधिकारियों की टीम ही देश को वर्तमान राजनैतिक और 

आर्थिक परिस्थितियों से बाहर निकाल सकती है।  

हालात जब लेते हैं नयी करवट , ले नया परचम जब कोई खड़ा होता है 


लिख जाता है वो आसमान पे नाम अपना, वही शक्स जमाने का खुदा होता है।
 

‘नमन

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