हम तो वो हैं जो जमाने के लिए थे ही नहीं
भूख और दर्द से बाहर कभी निकले ही नहीं।
भले ज़िंदा हैं मगर जी रहे हैं मर-मर कर
किसी के आँसू हमारे लिए बहे ही नहीं।
कोई ऐसा नहीं मिला जो गले लग जाता
किसी के हाथ हमारे लिए बढ़े ही नहीं।
हम तो ऐसा मज़ार हैं जहां पे कांटे हैं
किसी के पाँव हमारी तरफ बढ़े ही नहीं।
झूठ होते तो हाथो हाथ बिक गए होते
हम तो सच हैं किसी बाज़ार मे बिके ही नहीं।
‘नमन’
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