Tuesday, 2 July 2013

---- मनुष्यों के खिलाफ ---


 

---- मनुष्यों के खिलाफ ---      

 

बड़ी चर्चा है आज – कल

उस बड़े मुकदमे की

जो धर्मराज की अदालत में चल रहा है

पृथ्वी ने दायर किया है इसे

मनुष्यों के खिलाफ ......

हाँ ! याद आया

कुछ दिनो पहले

कोयल ने बताया था मुझे

बयान देकर आई है वह

धर्मराज की अदालत में

मनुष्यों के खिलाफ.....

 

उसने कहा था

भाई मैंने तो सब सच-सच

बताया अदालत में

शपथ जो ले रखी थी मैंने

सच बोलने की

वैसे भी हम पशु पक्षी

मनुष्यों की तरह

अपने स्वार्थ के लिए झूठ नहीं बोलते

बताया मैंने धर्मराज को

की कैसे बेसुरे मनुष्यों ने

अपने कर्कश स्वर में          

चिल्ला-चिल्ला कर

न केवल फैलाया है ध्वनि प्रदूषण

बल्कि नष्ट कर दी है

पृथ्वी की शांति

धरती माँ का आरोप सत्य है

मनुष्यों की गाली- गलौज

शोर और चीख़ों से

त्रस्त हैं धरती माँ

अब तो यज्ञ और हवनों में  

मंत्रोच्चार तक

सही ढंग से नहीं किया जाता

धर्मग्रन्थों को पढ़ा जाता है

गलत स्वर में

गलत अर्थों के साथ

और भी बहुत कुछ कहा मैंने

मनुष्यों के खिलाफ .......  

   

पिछले दिनो मेरी बाग के

आम के पेड़ ने भी

मुझसे कहा था

भैया संभल जाओ तुम लोग

बहुत हो गया अन्याय

वो भी शायद उसी दिन

गवाही देकर आया था

कह रहा था

कैसे रहता मैं चुप

हम देते हैं मनुष्यों को

छाँव, फल और आक्सीजन

और तुम

गला रेतते रहे हो हमारा

करते रहे हो हमे टुकड़े-टुकड़े

अपने स्वार्थ के लिए

दर्द होता है हमें

हमे भी होता है दर्द

हम चिल्लाते हैं  

पर तुम हमारी सुनते ही नहीं

अपने ही दंभ मे

बहरे हो गए हो तुम

पृथ्वी ने धर्मराज की अदालत मे

मांग की है की

मनुष्य को धरती से

वापस बुला लिया जाए

ताकि धरती पर

पेड़,पशु,पक्षी,फूल,पहाड़,नदियां

रह सकें खुशहाल और सुरक्षित

अपील की है पृथ्वी ने

मनुष्यों के खिलाफ .....

 

धर्मराज बुला रहे हैं

एक-एक करके सभी पीड़ितों को

दे रहे हैं सबको मौका

अपनी बात करने का

अपना पक्ष रखने का

मैंने मामले की गंभीरता को समझा

बात की मैंने सहयाद्रि से

वे बोले, सही बात है

मुकदमा तो चल रहा है

धर्मराज के पास

मेरा बयान अभी नहीं हुआ है

पर पर्वतराज हिमालय का बयान

हुआ था पिछली पेशी पर

मैं था वहाँ

बहुत नाराज़ थे पर्वतराज

कह रहे थे

पहले तो मनुष्य खोदता था हमें

फावड़ा, कुदाल जैसे छोटे औज़ारो से

होते थे छोटे-छोटे घाव

हमारी छाती पर

हम बर्दाश्त कर लेते थे उन्हे

अब तो बड़ी-बड़ी मशीन कर रही हैं

विदीर्ण हमारा हृदय

नोच रही हैं हमे

गिद्धों की तरह

पर्वतराज ने सिसकते हुये बताया था

धर्मराज से  

रो पड़े थे वे देते हुये बयान

मनुष्यों के खिलाफ .......

 

उस दिन जब मै

खिला रहा था चारा

अपनी गाय को

मेरा हाथ चाटते हुये

उसने मुझे बताया

पिछले दिनो जंगल के राजा

शेर की भी हुयी थी पेशी

धर्मराज की कचहरी मे

बयान दिया है उन्होने

मनुष्य की हिंसा के खिलाफ

साफ-साफ कहा उन्होने

हम जानवर तो सिर्फ

भूख लगने पर करते हैं शिकार

पर ये क्रूर मनुष्य

खेल- खेल मे मार डालता है

पशुओं और पक्षियों को

शिकार करना खेल है इसका

निरीह प्राणियों को कत्ल करना

इसकी आदत बन चुका है

जंगल मे दहाड़ने वाले

जंगल के राजा गिड़गिड़ाए थे

उस दिन

धर्मराज की अदालत में   

रो पड़े थे वे

आँसू आ गए थे

मेरी गाय की आँखों मेँ

मेरे लिए नहीं

अपने लिए भी नहीं

जंगलराज के लिए

बहुत क्षोभ था उसके मन में

मनुष्यों के खिलाफ ....

गाय ने ही बताया

अगली पेशी

गंगा मैया की है

सभी नदियों का

प्रतिनिधित्व करती हैं वे

यह सब सुन कर मैं

सकते मेँ हूँ

अपने स्वार्थ के लिए

बदल दी है हमने

नदियों की दिशा और दशा

मानव निर्मित कचरे और गंदगी से

हो रही है

नदियों की दुर्दशा

घाट हो रहे हैं गंदे

जल प्रदूषित

मैं सोच रहा हूँ

क्या बयान देंगी गंगा माँ

मनुष्यों के खिलाफ .......

मनुष्यों के खिलाफ ........   नमन

 

 

1 comment:

  1. मन को छूती हुई सुंदर अनुभूति
    बेहतरीन रचना
    बधाई


    जीवन बचा हुआ है अभी---------

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