Monday, 1 July 2013

-- गंगा --

      -- गंगा --

जब से पत्थर से दिल लगाया है
पत्थरों मे सुकून पाया है। 


जिसको चाहा है इतनी शिद्दत से 

आज-कल गैर का वो साया है । 

आज नाराज़ हो के गंगा ने
खुद हिमालय पे कहर ढाया है। 


अब नहीं साली वश मे जीजा के
उसने खुद शिव को भी धमकाया है। 


जहां खुशियों के फूल खिलते थे
मौत का आज वहाँ साया है। ‘नमन’

1 comment:

  1. आपकी यह रचना कल मंगलवार (02-07-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

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