Tuesday, 4 June 2013

महुआरी



  -- महुआरी --

उसी महुआरी मे 
महुआरी के एकमात्र
पीपल की डाल पर
मेरा मन 
आज भी अंटका है 
जहां उसने 
पीपल के पत्ते को 
तोड़ कर सहलाते हुये 
दिया था मेरे हाथों मे  
यह कह कर की 
लो अपना दिल कर रही हूँ 
तुम्हारे हवाले 
संभालना कहीं उड़ न जाए 
और वो सचमुच उड़ गई
मै आज भी खड़ा हूँ 
वहीं उसी मोड पर 
इंतजार है उसका 
भले सूख गया है पत्ता 
पीपल का 
महुआरी के एकमात्रपर दर्द 
अब भी हरा है ..... 'नमन'

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