माँ
है घर का बोझ सारा उसपे फिर भी मुस्कराती है
मेरी माँ मेरे सारे नाज़ और नखरे उठाती है ।
मैं भूखा सो गया जिस दिन मेरी माँ सो नहीं पाती
कलेवा सुबह का माँ अपने हाथों से खिलाती है ।
दुवाएं उसकी मुझ तक कोई गम आने नहीं देती
मगर यादें मेरी माँ की मुझे अक्सर रुलाती है ।
वो देवी है, भला भगवान से वो क्यों कुछ मांगे
मेरी माँ सिर्फ मेरे ही लिए मंदिर जाती है ।
माँ गुस्से मे होती है तो कुछ अच्छा नहीं लगता
वो माँ ही है जो मुझपे रात दिन खुशियाँ लुटाती है।
‘नमन’
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