Sunday, 12 May 2013

माँ

                      
                माँ

है घर का बोझ सारा उसपे फिर भी मुस्कराती है
मेरी माँ मेरे सारे नाज़ और नखरे उठाती है ।

मैं भूखा सो गया जिस दिन मेरी माँ सो नहीं पाती
कलेवा सुबह का माँ अपने हाथों से खिलाती है ।

दुवाएं उसकी मुझ तक कोई गम आने नहीं देती
मगर यादें मेरी माँ की मुझे अक्सर रुलाती है ।

वो देवी है, भला भगवान से वो क्यों कुछ मांगे
मेरी माँ सिर्फ मेरे ही लिए मंदिर जाती है ।

माँ गुस्से मे होती है तो कुछ अच्छा नहीं लगता
वो माँ ही है जो मुझपे रात दिन खुशियाँ लुटाती है।
                                                         ‘नमन’

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