कमल
ये लड़की आज फिर बेईमान हुयी
जाती है
किसी के कत्ल का सामान हुयी
जाती है ।
बड़ी ज़ालिम है , बेरहम है ,बेमुरव्वत है
हुश्न पर अपने बदगुमान हुयी
जाती है ।
बदन का रंग जैसे दूध मे
मिली हो केसर
जवान दिलों का अरमान हुयी
जाती है ।
जिधर से निकले कयामत होती
है बरपा
ये सारे शहर का ईमान हुयी
जाती है ।
उससी गजल पे कोई भी गजल
कह देता
बेवजह ‘नमन’ पर मेहरबान
हुयी जाती है।
‘नमन' (ये गजल हमने आदरणीय कमलजीत कौर के कहने पर
लिखी थी । उनकी फोटो के साथ उन्हे ही समर्पित॥ )
No comments:
Post a Comment