Saturday, 11 May 2013

कमल




           कमल
ये लड़की आज फिर बेईमान हुयी जाती है
किसी के कत्ल का सामान हुयी जाती है ।

बड़ी ज़ालिम है , बेरहम है ,बेमुरव्वत है
हुश्न पर अपने बदगुमान हुयी जाती है ।

बदन का रंग जैसे दूध मे मिली हो केसर
जवान दिलों का अरमान हुयी जाती है ।

जिधर से निकले कयामत होती है बरपा
ये सारे शहर का ईमान हुयी जाती है ।

उससी गजल पे कोई भी गजल कह देता
बेवजह नमन पर मेहरबान हुयी जाती है।
                               नमन'  

(ये गजल हमने आदरणीय कमलजीत कौर के कहने पर 
लिखी थी । उनकी फोटो के साथ उन्हे ही समर्पित॥ )

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