मेरे काव्य- संग्रह ' मै कविता और तुम' से....
मेरी वफ़ा यहाँ किसी के काम आई नहीं
ये जिंदगी कभी खुले-आम मुस्करायी नहीं|
हमेशा फर्क रहा मुझमे और महफ़िल में
मेरे ग़मों पे कोई आँख छलछलाई नहीं|
जिसे भी चाहा वही मुझसे दूर जा बैठा
मेरे नसीब में अपनों क़ी वफ़ा आई नहीं|
ऐ खुदा दर्द ज़माने का मुझे तूने दिया
और ज़माने को कभी मुझपे दया आई नहीं|
मैं वो शाख हूँ जिस पर नहीं कोई पत्ता
मेरे हिस्से में अभी तक बहार आई नहीं|
मेरे अपनों ने यहाँ मुझपे रहम इतना किया
दिल भले चाक हुआ, जान पर बन आई नहीं|
अब तो आंसू भी मेरे अपने ना रहे ऐ 'नमन'
बहुत दिनों से इन आँखों में नमी आई नहीं||
'नमन'
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