Wednesday, 20 June 2012

TUM




                       तुम 

चंद  लफ्जों में तुम्हारी  नक़ल हो  ना  सकी
हज़ार कोशिशें क़ी तुझ सी ग़ज़ल हो ना सकी|
उसका  चेहरा   है या क़ी  माहताब  है  यारा
इस खुदाई में कोई तुझ सी शक्ल हो ना सकी |
रातों को जाग कर कोशिश तो बहुत क़ी मैंने
मगर वैसी ग़ज़ल, जैसी है असल हो ना सकी |
मैं  जानता हूँ  तेरे चाहने  वाले  हैं बहुत
मुझसे मुफलिस से कोई तेरी टहल हो ना सकी|
माफ़  करना 'नमन' हम  हैं नहीं  तेरे  काबिल
दुआ अपनों क़ी हमें  कभी  हासिल हो ना सकी|
                                                               'नमन' 

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