Sunday, 8 July 2012

Nazar Ka Teer


मेरे प्रथम काव्य संग्रह क़ी एक-
ग़ज़ल ... आपके लिए....  

क्या कहें तेरी नज़र का तीर दिल के पार है
इश्क क़ी कश्ती क़ी तेरे हाथ में पतवार है|

तुमने होठों से कहा कुछ भी नहीं हमसे मगर
हमने समझा तुमको मेरे प्यार पर ऐतबार है|

मौजें दरिया के किनारों से सदा टकराती हैं
कौन जाने इसमें उनका प्यार है या रार है|

हमने इन तारों से अपना चाँद माँगा जब कभी
तो वे बोले क़ी उन्हें इनकार ही इनकार है|

हुश्न के बाज़ार में दिल बेचने आये हैं हम
और कीमत में मोहब्बत क़ी हमें दरकार है|

दिल में बसना है मेरे या दिल है मेरा तोड़ना 
पूंछने क़ी बात क्या है ये तेरा अधिकार है|
                                                               'नमन'

No comments:

Post a Comment