Friday, 27 April 2012


                         किसान क़ी आत्म कथा 


रोशनी के लिए घर जलाते हैं हम
प्यास को आंसुओं से बुझाते हैं हम|


भूख होती नहीं जब भी बर्दाश्त है 
फांसियों को गले से लगाते हैं हम|



भूख से हम भले ही तड़पते रहे 
भूख सबकी मिटाना मेरा काम है।



आज भी हममे गैरत है ईमान है 
धरती मां में ही बसती ये जान है|


हर फसल को पसीने से हम सींचते 
धरती क़ी गोद ही अपनी पहचान है|


श्रम का संसार ही अपना संसार है 
श्रम क़ी बाँहों में ही अपना घर-द्वार है|


जिंदगी  साथ हमारा  भले  छोड़  दे 
मां क़ी बाँहों में बस प्यार ही प्यार है|
                                               'नमन'

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