किसान क़ी आत्म कथा
रोशनी के लिए घर जलाते हैं हम
प्यास को आंसुओं से बुझाते हैं हम|
भूख होती नहीं जब भी बर्दाश्त है
फांसियों को गले से लगाते हैं हम|
भूख से हम भले ही तड़पते रहे
भूख सबकी मिटाना मेरा काम है।
आज भी हममे गैरत है ईमान है
धरती मां में ही बसती ये जान है|
हर फसल को पसीने से हम सींचते
धरती क़ी गोद ही अपनी पहचान है|
श्रम का संसार ही अपना संसार है
श्रम क़ी बाँहों में ही अपना घर-द्वार है|
जिंदगी साथ हमारा भले छोड़ दे
मां क़ी बाँहों में बस प्यार ही प्यार है|
'नमन'
No comments:
Post a Comment