Thursday, 12 April 2012


ये गाँव तेरी याद  सताती  है आज भी 
खुशबू तेरी माटी क़ी रुलाती है आज भी|

हम रूठ कर तुझसे शहर तो आ गये मगर
दादी तेरे  बारे में   बताती है  आज  भी|

वो दोस्तों के साथ मटरगस्ती के रात- दिन 
सब याद करके आँखे भर आती हैं आज भी| 

गेहूं के लहलहाते खेत और धान क़ी बाली
सरसों के  फूलों क़ी याद आती है आज भी |

वो खेत - खलिहानों में बीते हुए पल
बहती हुयी पुरवाई बुलाती है आज भी|

होली में दोस्तों के साथ  रंग  खेलना
फागुन क़ी याद साँस महकाती है आज भी|

अमराईयों की छांव और सावन के वो झूले
ताज़े गुड की महक ललचाती है आज भी|  


तू दूर है मुझसे मगर ये मेरी माती
सपनों में मेरे रोज तू आती है आज भी||  'नमन' 

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