Friday, 29 July 2011

YAADEN

याद आई तेरी चुपके से
दबे पाँव मगर 
शोर सा उठा दिल में  
और जहन जाग गया 
बंद कर आया था मैं 
सारे खिड़की दरवाजे 
न जाने कौन 
ये सारे किवाड़ खोल गया
उठा झाँका तो देखा 
मुस्करा रहे थे तुम
ठीक वैसे ही जैसे 
पहले मुस्कराते थे
तेरे गालों पे
लालिमा थी उगते सूरज की
तेरी आँखें थी मस्त 
और कुछ अलसाई हुयी
आँख के कोरों से 
बह रहा था रात का काजल
और फिर तुमने 
क़यामत की ली अंगडाई थी
यूं लगा जैसे 
बंधन तमाम टूट गए
एक तूफ़ान उठा 
एक जलज़ला आया
कांप उठे दरो-दीवार 
ख्वाब बिखर गए
होश आया तो 
मैं कैदी था तेरी जुल्फों  का
तूने मुझको अपनी  लटों में  
उलझा रखा था 
मैं था मदहोश उनकी
भीनी भीनी खुशबू से 
तूने मुझको तेरा
बीमार बना रखा था
और मैं खुश था तेरी कैद में 
ऐ हुश्न मगर
तूने पहलू में 
रकीबों को बिठा रखा था........
                                           'नमन,





 

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