भूख ने छीन लिए हैं
उनके सारे स्वप्न
विवशताओं का विश्व
कैसे उठा पायेगा
आकांक्षाओं के आसमान का बोझ
सामने है सुख़ और समृद्धि की मृगमरीचिका
भीड़ धकेल रही है एक दूसरे को
वहां तक पहुंचने की कोशिश में
ऐसे में बीच में आ जाते हैं
विचारों का दूध भरा कटोरा लिए
विचारों का दूध भरा कटोरा लिए
कुछ विवेकशील विद्वतजन
भीड़ उन्हें बरबस ही कुचल देती है
दूध का रंग हो जाता है लाल
और इंसानी खून सफ़ेद
यही रहा है नियति का चक्र
बरसों से
पहले पशुता कुचल देती है
विचारों के जनक को
और फिर वर्षों बाद
उन्हें बना दिया जाता है ईश्वर
जिन्हें मनुष्य मानना तक हमें कबूल न था| | 'नमन'
दूध का रंग हो जाता है लाल
और इंसानी खून सफ़ेद
यही रहा है नियति का चक्र
बरसों से
पहले पशुता कुचल देती है
विचारों के जनक को
और फिर वर्षों बाद
उन्हें बना दिया जाता है ईश्वर
जिन्हें मनुष्य मानना तक हमें कबूल न था| | 'नमन'
No comments:
Post a Comment