Monday, 16 May 2011

BANSURI

मित्रों, 
आज कल मन कुछ अस्वस्थ है, कुछ लिखने /
कहने का मन नहीं है| किसी अपने के लिए
जो हृदय के बहुत नजदीक है
कुछ कहा भी  तो अधूरा कहा, 
वही ब्लॉग पर लिख रहा हूँ| शायद आपको कुछ 
आनंद दे जाये.........
मैं मुसाफिर हूँ मुझे मंजिलों से नफरत है
सफ़र में रहना मेरी आरजू है,फितरत है|
मैं जिसके इश्क में दीवाना हुआ फिरता हूँ
वो बुत सुना है किसी और की अमानत है|| 'नमन'
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क्या कहें क्या न कहें, दिल की कसक बाकी है
उनकी आँखों में मोहब्बत की चमक बाकी है| 'नमन'
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ज़ख्म सीने पे लगाओ तो गीत गाता है
 बेसुरा बांस तलक बांसुरी बन जाता है||  
जिसने मुझको दिया है दर्द वो विधाता है
मेरी ग़ज़लों का श्रेय सिर्फ उसे जाता है||
'नमन'

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गीत जब भी लिखे किसी के लिए
उसको चाहा है  जिंदगी के लिए|
दोस्ती  में  दुवा     जरूरी      है
दोस्तों कि सलामती के लिए||  'नमन'
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बिन बताये मेरे ख्वाबों में चले आते हो
मेरी नीदों में आ के तुम मुझे सताते हो|
मेरी यादों क़ी गली में है आना जाना तेरा
आँख के रास्ते तुम दिल में उतर जाते हो|| 'नमन'
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तेरी मासूमियत का ए सनम जवाब नहीं
रखना बच्चो सा दिल इस दौर में आसान नहीं|
तेरे मुकाबिल नहीं कोई भी यहाँ पर ए दोस्त
इश्क क़ी राह में चल पड़ना  सबका काम नहीं|| 'नमन'
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जिन चिरागों से दोस्ती क़ी है
आग घर में उन्ही से लगती है
कब बेगानों  ने घर जलाया  है
आगजनी दोस्तों ने ही क़ी है|| 'नमन'
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आज खुश हूँ  कि किसीने मुझे आवाज तो दी
बरसों भटका हूँ इन गलियों में पागलों क़ी तरह|
ये मेरा  दर्द  मेरा  ज़ख्म मुबारक मुझको
यूँ तो जीते हैं यहाँ  लोग पत्थरों क़ी तरह|| 'नमन'
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