बहू को प्रताड़ित करने की नयी नयी योजनाओं को मूर्त रूप देने में ही सास ननदों के दिन महीने तो छोडिये साल पर साल गुजरते रहे| अबला बहू की सिसकियाँ सास के कानो में मधुर संगीत की तरह गूंजती रहती हैं|
बहुओं को प्रताड़ित करने की यह परंपरा अर्वाचीन काल से हमारे देश में चली आ रही है|
कुछ विद्वानों का मानना है की यह सीता का राम के प्रति अगाध प्रेम नहीं था जिससे विवश होकर
वे राम के साथ वनवास पर गयी यह तो राम की अनुपस्थिति में अपनी तीन तीन सासुओं - कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा द्वारा सताए जाने का भय था जो सीता ने रनिवास की जगह वनवास चुना| बनवास में वे अपनी सासुओं से सुरक्षित थी|
तीन तीन सासुओं का चरण दबा कर वे कुछ ही दिनों में थक चुकी थी| उन्होंने सोचा की वनवास में उन्हें अपनी सासुओं की जली कटी से तो निजात मिलेगी अतः उन्होंने राम के साथ वनवास की राह चुनी|
इतिहास में ऐसे हजारों उदाहरण हमें मिल जायेंगे|
अब माता कुंती को ही देखें, उन्हें क्या जरूरत थी की इतनी सुंदर सुकोमल द्रोपदी को पाँच पाँच पांडवों के हवाले कर देती|
यह उनका पुत्र वधू के प्रति द्वेष ही था जिसने उनसे ऐसा अमानुषिक कृत्य करवाया|
पांच पाँच पांडवो की सेवा सुश्रुषा करते द्रोपदी ने अपना जीवन कैसे गुजारा होगा यह सोच कर आज भी मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं| और पति भी द्रोपदी को कैसे मिले, जिन्होंने उसे इंसान न समझ भोग विलास की वस्तु समझा और जुए में दांव पर लगा दिया| यह कहाँ का न्याय है की जुए में हारें पांडव पर निर्वस्त्र हों द्रोपदी|
वहां सभागृह में बैठी द्रोपदी की एक और सास द्रोपदी पर
हो रहे अत्याचार का मजा ले रही थी|
रानी गांधारी की उपस्थिति में द्रोपदी के चीर हरण का प्रयास हुआ और वे चुप रहीं| शायद मन ही मन प्रसन्न भी हो रही हो जिसे वेदव्यास न देख पाए हों|
यह तो भगवान् कृष्ण थे जो उसकी लाज बची|
कृष्ण विद्वान हैं जगतगुरु हैं सो जानते हैं की सासू मांए अपनी बहुओं के साथ क्या क्या करा सकती हैं? अतः वे मथुरा छोड़ द्वारका में जा बसे जहाँ यशोदा और देवकी उनकी प्रियतमाओं को प्रताड़ित करने नहीं पहुँच सकती थी|
शास्त्रों में लिखा है जरासंध के आक्रमण से हो रही धन और जन क़ी हानि को रोकने के लिए वे द्वारका जा बसे|
पर गूढ़ सत्य तो आप और हम जैसे कुछ लोग ही जानते हैं कि द्वारका जा बसने का असली कारण कुछ और ही था|वे
अपनी प्रिय रानियों को सास के अत्याचार से बचाना चाहते थे|
बहुओं को पीटना, जलाना, उत्पीडित करना सासुओं का प्रिय शगल रहा है| आज कल की तेज तर्रार बहुएं जिन्होंने इतिहास पढ़ा और समझा है, सासू माओं के मनोविज्ञान से पूर्ण परिचित हैं, शादी के पहले ही होने वाले पतियों से शर्त रखती हैं कि सास के साथ नहीं रहेंगी| पहले अलग घर का इंतजाम
करो फिर बारात लेकर आओ| ऐसे में कितने ही नव युवक जिनमे घर खरीदने कि क्षमता नहीं है कुंवारे ही यहाँ वहां भटक रहे हैं| सरकार ने ऐसे ही नवयुवको
क़ी समस्या को समझ कर घरों के लिए लोन क़ी व्यवस्था करवाई, नहीं तो कितने बेचारे कुंवारे ही मर जाते|
प्रेमिकाएं आज कल ऐसे ही लड़कों से प्रेम प्रसंग आगे बढाती हैं जिनकी मां स्वर्गवासी हो गयी हो|
अतः आज कल अपनी मां को इश्वर मानने वाले सुपुत्रों को
सुंदर, सुकोमल, सुगढ़, सुशिक्षित, सुशील बहुएं नहीं मिल रहीं हैं|
इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण मिल जायेंगे जहाँ राजकुमारों ने अपने पिता यानि राजा क़ी गद्दी छीन ली है और स्वयं राजा बन बैठे हैं| यह बात इतिहासकारों क़ी समझ में देर से आई क़ी इसमें उनका कुर्सी प्रेम कम और पत्नी प्रेम अधिक था|
अपनी सुकोमल पत्नियों को सासू मां
के अत्याचारों से बचाने का उनके पास यही एक मात्र रास्ता था| जो राजा समझदार होते थे वे स्वयं ही राजगद्दी राजकुमार के लिए छोड़ कर वानप्रस्थ आश्रम में चले जाते थे|
पहले सास और ननदें पनघट एवं तालाबों पर पडोसी सास और ननदों से बहू उत्पीडन क़ी नयी नयी तरकीबें सीखते थे, अब यह काम किटी पार्टियों में सफलतापूर्वक हो रहा है|
यहाँ तक तो ठीक था , अब तो टी.वी. प्रोग्रामो और फिल्मों में बहुओं को सताने के नए नए नुस्खे दिखलाये जा रहे हैं और सासुएँ घर बैठे यह गुण सीख रही हैं|
यह तो भला हो जीतेन्द्र पुत्री एकता कपूर का जिसने "सास भी कभी बहू थी" जैसे सिरिअल बना कर सासू माओं
को यह याद दिलाया क़ी आप भी कभी बहू थी| अतः नव वधुओं के लिए एकता प्रातः स्मरणीय हैं|
कुछ पुत्रवधुएँ तो अपने अन्तःपुर में प्रातः वन्दनीय
एकता कपूर के तेलचित्र लगा कर उन्हें अगरबत्ती दिखलाती पाई गयी हैं|
परन्तु बहू प्रताड़ना का यह अभिशाप अभी तक मिटा नहीं है|
बेटे के हर दोष के लिए बहू को जिम्मेदार करार दिया जाता है| बेटे क़ी नौकरी उसके समय पर ऑफिस न जाने के कारण छूटी तो दोष बहू का, बेटा शराब पिए तो दोष बहू का, व्यापार में घाटा हुआ तो बहू के पायगुण खराब, बहू ने पोते क़ी जगह पोती को जन्म दे दिया तो बहू का जीना हराम|
ननद ने किसी लडके से प्रेम विवाह कर लिया तो ये बहू ने ही सिखाया होगा इत्यादि इत्यादि|
हमारे पुल के उस पार रहने वाले गुरुजी का कहना है क़ी हमारे यहाँ क़ी सती प्रथा क़ी जड़ में भी बहू प्रताड़ना ही रही होगी
जब पति के जीते जी सासू मां क़ी इतनी प्रताड़ना सहनी पड़ती है तो पति के मरने के बाद होने वाली असह्य दुर्व्यवहार के बारे में सोच कर ही बहुए मरने का फैसला कर लेती होंगी, और हम सोच रहे थे क़ी वे पति प्रेम में सती हो रही है|खैर,आगे से आने वाली बहुओं और सासुओं में सद्भावना हो, घर का कल्याण हो, ड्राईंग रूम में शांति हो इत्यादि इत्यादि शुभकामनाओं के साथ...
आपका'
'नमन'
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