Friday, 27 May 2011

मित्रों,



वर्षों पहले क़ी मेरी एक रचना मुझे याद आ रही है, उसकी कुछ
पंक्तियों के साथ मैं आज आपको संबोधित करना चाहूँगा....


एक कविता
मेरी कविता को नष्ट कर देती है
जब मै मेरी कविता को
प्रकृति के रंगों से निखार रहा होता हूँ
दूसरी कविता स्वयं
इन्द्रधनुषी रंगों से सजी
मेनका बन आ उपस्थित होती है
एक कविता
मेरी कविता को नष्ट कर देती है


इन पंक्तियों को लिखने का मेरा प्रयोजन सिर्फ इतना
है क़ी कभी हम कविता देखते हैं, कभी महसूस करते हैं तो कभी
लिखते हैं इन सब अवस्थाओं के बीच से गुजरते हुए कभी कभी
हम हम नहीं रह जाते|
कल एक रचना/ ग़ज़ल पढ़ कर एक और ग़ज़ल हो गयी
यह ग़ज़ल उस उत्कृष्ट रचनाकार को समर्पित!
उनकी रचनाधर्मिता, उनके कौशल्य, उनके शिल्प को प्रणाम सहित...


हुस्न भी है,  हुनर भी है , है सजावट भी
ये काफी था पर इनमे है खुदा क़ी आहट भी|


ग़ज़ल कहने क़ी अदा क्यूँ न ख़ूबसूरत हो
इनमे शामिल है तेरे लवों क़ी मुस्कराहट भी|


मै तुझपे ऐ ग़ज़ल पूरी ग़ज़ल ही कह देता
मगर आ जाएगी   इसमें    तेरी    बनावट   भी|
                                                                                'नमन'

1 comment:

  1. NICE ....LABON KI MUSKURAHAT.....
    तेरी जुस्तजू, तेरा इंतज़ार ही मेरी हिम्मत है,
    चहरे की सिकन को, मेरी हार ना समझना.
    एहले-वफ़ा की राह में दुस्वारियां हैं लेकिन,
    दिल की लगी हमेशा ही दिल्लगी नहीं होती.

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