Wednesday, 9 March 2011

ROOMANIYAT

मित्रों,
काफी दिनों से कोई ग़ज़ल नहीं हुई थी| काफी व्यस्त रहा|
चारों तरफ फैला हुआ सियासत का जंगल  कब मुझे निगल
जायेगा, इसी उधेड़बुन में खुद से दूर हो गया था|
 क्यों कि हूँ तो मैं भी इंसान ही , कमजोरियों का पुतला|
 खैर चलिए ग़ज़ल कि तरफ चलें.... 

कोई आलाप रूहानी तो निकले
तुम्हारी आँख से पानी तो निकले|

मेले में बहुत सी लड़कियां हैं
कोई इनमें से रूमानी  तो निकले|

गरीबी पर हुई संसद में चर्चा
गरजते मेघ से पानी  तो निकले|

हजारों प्रेम के किस्से सुने हैं
एक राधा सी दीवानी तो निकले|

सियासतदां बहुत फूले फले हैं 
एकाधा भोज सा दानी तो निकले|
                                            'नमन'

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