मित्रो,
होली के इस महीने मे जब मन थोडा थोडा बावरा हो जाता है,
अपने प्रिय को तलाशता है| प्रिय की दूरी उसे असह्य हो जाती है|
वियोगी मन किसी का सुख ,किसी की ख़ुशी देख कर खुश होने की
जगह नाराज हो जाता है, बेचैन हो जाता है| ऐसे ही एक बिरहाकुल
मन के भाव आप तक प्रेषित कर रहा हू|
पिय के बिन कैसी होली है?
क्यो कोयल बाग में बोली है
क्यो फूल बाग में खिलते है
क्यो भवरे उनसे मिलते है
क्यो दुनिया रंग रंगीली है?
पिय के बिन कैसी होली है?
क्यो हृदय प्रेम से पगे हुये
क्यो लोग रंगो से रंगे हुये
क्यो फाग मनाती टोली है?
पिय के बिन कैसी होली है?
क्यो पुरवायी ये डोली है
क्यो होती हंसी ठीठोली है
क्यो लोग गा ऱ्हे होरी है?
पिय के बिन कैसी होली है?
पिचकारी रंग की छूटी है
अब लाज शर्म सब रुठी है
रंगो ने खोली झोली है
पिय के बिन कैसी होली है?
क्यो लाल गुलाल उडाते हो
क्यो रोली तिलक लगाते हो
क्यो कहते इसको होली है?
पिय के बिन कैसी होली है?
'नमन'
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