Tuesday, 7 December 2010

VICHARDHARA AUR RAJNATIK PARTIYAN

आज क़ी राजनैतिक परिस्थितियों को देख कर क्या हम विस्वास कर सकते हैं कि ये पार्टियाँ किसी न किसी राजनैतिक विचारधारा कि उपज हैं| आज विचार कहीं दिखाई नहीं पड़ते , दिखाई पड़ती है सिर्फ स्वार्थी, सत्ता लोलुप ,
सफ़ेदपोश, सत्ता के मद में अंधे धृतराष्ट्रों कि कतारें | ये सारे धृतराष्ट्र प्रजातंत्र रुपी पांचाली का सरे आम चीर हरण कर रहे
हैं| मैंने कभी लिखा था.........
     राजनीती अनीति का वह मार्ग है, संत कि जिससे पुरानी  दुश्मनी है|
रोज दर रोज प्रजातंत्र को राजनीती कि चौसर पर नंगा किया जा रहा है| धृतराष्ट्रों कि कृपा पर पल रहे पत्रकारिता के
पितामह- द्रोणाचार्य - कृपाचार्य चुप चाप इस अनाचार को देख रहे हैं|  किसी क़ी हिम्मत नहीं क़ी इनकी ललकार के बाद भी ये दुस्क्रित्य जारी रख सके| ये सब के सब अपराजेय हैं, पूजित हैं, परन्तु सत्ता क़ी भागीदारी ने इनका मुंह
बंद कर दिया है, धृतराष्ट्र  के पास इनके शस्त्र गिरवी हैं, सुविधावों के पास इनकी आत्मा गिरवी है|
 जन क़ी सेवा, राष्ट्र क़ी सेवा, आम इंसान क़ी सेवा ही सभी राजनैतिक पार्टियों क़ी विचारधारा का केंद्र है|
फर्क सिर्फ सेवा कैसे बेहतर ढंग से हो सकती है, राष्ट्र का उत्थान कैसे बेहतर ढंग से किया जा सकता है , उन
तौर तरीकों में हो सकता है| परन्तु आज इन सभी राजनैतिक दलों के कर्ता-धर्ता सिर्फ और सिर्फ अपने विकास
में लगे है| आम आदमी के लिए मेरी अपनी कविता क़ी कुछ पंक्तियाँ जो मैंने १५ अगस्त क़ी पूर्व संध्या पर अपने ब्लॉग पर लिखी थी, के साथ आज का वार्तालाप ख़त्म करता हूँ,
राजनैतिक विचारधारा पर चर्चा जारी रहेगी..........
     वह अभी कल ही तो मारा था/ शायद परसों भी/ उसके पहले भी कई कई बार/
      सिर्फ मरने क़ी स्थितियां अलग अलग हैं/ फिर यह शरीर/
      मत पूंछो मित्र/ यह तो सिर्फ एक चलती फिरती लाश है/
      जिसे हिला डुला रही है/ कभी बच्चे क़ी भूख/ कभी मां क़ी आशा/
      कभी भाईयों क़ी आशा तो कभी/ बीबी क़ी प्रश्नवाचक आँखों ने/
      मजबूर किया है क़ी यह / हिलता डुलता रहे- हिलता डुलता रहे..... नमन

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