Tuesday 28 December 2010

SACH

मित्रों,  बहुत पहले अपने एक व्यंग लेख में मैंने महात्मा गाँधी के तीनो बंदरों क़ी कहानी उधृत करते हुए लिखा था क़ी गाँधी जी ने  तो अपने बंदरों के माध्यम से बुरा न  करने( झूठ न बोलने),बुरा न  सुनने(झूठ न सुनने),बुरा न  देखने (झूठ न देखने) क़ी बात क़ी थी पर आज के राजने ताओं ने  सच बोलना , सच सुनना , सच देखना मना है क़ी सीख इन बंदरों से ले ली|  अब 
परिस्थितियां ऐसी हो  गयी हैं क़ी सच को जगह जगह सूली दी जा
 रही है | कोई सच बोले तो कैसे? इसके पहले सच बोलने पर ईसा को
 सूली, गाँधी को गोली और जोअन ऑफ आर्क को होली मिल चुकी
है | अब हालात इतने बुरे हैं क़ी लोग झूठ को  सच मान लेते हैं
और सच बोलने वाले को झूठा समझते हैं| मैंने कभी लिखा था...
"सच कहेगा जो वो सूली पायेगा ,
 सत्य क़ी जग से पुरानी दुश्मनी है|"
इन दिनों अपने आपको हिन्दुओं का मसीहा बताने वाले  कुछ संगठन 
 राहुल गाँधी के पीछे पड़ गए हैं क़ी उन्होंने मुस्लिम आतंकवाद से
हिन्दू अतिवाद को देश के लिए  अधिक खतरनाक  बताया| और राहुल गाँधी का ये सच इन लोगों को रास नहीं आ रहा है | मुस्लिम लीग और हिन्दू महासभा के वैर क़ी उर्वरा भूमि पर पर पाकिस्तान का जन्म हुआ| जिन्हें मुस्लिम लीग क़ी विचारधारा पर विश्वास था
ऐसे मुसलमान पाकिस्तान चले गए | जो मुसलमान कांग्रेस क़ी 
सर्व धर्म सम भाव क़ी विचारधारा में  विश्वास करते थे वे हिन्दुस्तान में
रहे, इसे अपना देश माना , यहाँ क़ी संस्कृति में उनका विश्वास था, महात्मा गाँधी में उनका विश्वास था, डॉ अबुल कलाम आज़ाद में उनका
 विश्वास था,  अपने हिन्दू भाईयों में उनका विश्वास था और इसी विश्वास और माटी के प्रेम ने उन्हें पाकिस्तान जाने से रोका| पर हमारा दुर्भाग्य है क़ी हमारे कुछ भाईयों ने उन्हें अपने हृदय से दूर रखा और कभी उनपर विश्वास नहीं  किया| राहुल गाँधी का इशारा इन्ही ताकतों क़ी ओर था | बाहर से हो रहे मुस्लिम आतंकवाद से हमें निपटना पड़ रहा है और उनसे हम निपट भी रहे हैं परन्तु जो ताकतें हिन्दुस्तानी मुसलमानोंके खून में सम्प्रदायवाद का जहर भरने में लगी हैं, हिन्दू और मुसलमानों में कटुता निर्माण करने में लगी हैं वे ताकतें अगर सफल हो गयी तो उनसे लड़ना अत्यंत कठिन होगा | ' इश्वर- अल्लाह तेरो नाम, सबको सम्मति दें भगवान्,' का मन्त्र देने वाले महात्मा को इन्ही ताकतों ने गोली मार दी | ये वही कायराना ताकतें हैं जिन्होंने सोनियां गाँधी का हश्र इंदिरा गाँधी जैसा करने क़ी सार्वजनिक घोषणा पिछले दिनों की है | इन निंदनीय ताकतों क़ी कारगुजारियां देखकर ही मेरे एक मुसलमान मित्र ने मुझसे कहा..
'गुलिस्तान को लहू क़ी जरूरत पड़ी, सबसे पहले ही गर्दन हमारी कटी,
आज कहतें हैं हमसे ये अहले चमन, ये चमन है  हमारा तुम्हारा नहीं||'
  इन्ही लोगों ने अभी परसों ही ८४वे अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मलेन क़ी स्मरणिका  के माध्यम से नाथूराम गोडसे को महिमा मंडित करने का प्रयास किया| ये वही ताकतें हैं जिन्होंने  २०००-२००१ में जब केंद्र में भारतीय जनता पार्टी क़ी सरकार थी,  उस समय क़ी जन गणना के प्रपत्रों में महात्मा गाँधी क़ी हत्या को गाँधी वध का संबोधन दिया था| ये वही ताकतें हैं जो १९९० के दशक में स्वतंत्रता सेनानी और मशहूर शायर अली सरदार जाफरी
साहब का राशन कार्ड रद्द कर देती हैं और उनसे हिन्दुस्तानी होने का प्रमाण मांगती नज़र आती हैं| इन्ही अली सरदार जाफरी साहब
क़ी कुछ पंक्तियों के साथ जो उन्होंने स्वतंत्रता आन्दोलन के समय कही थी के साथ अपनी आज क़ी बात ख़त्म करता हूँ....
"जिंदगी को हमसे ज्यादा कौन कर सकता है प्यार
और जो मरने पे आयें, तो मर जाते हैं हम
जाग उठाते हैं तो सूली पर भी नींद आती नहीं
वक़्त पड़ जाये तो अंगारों पे सो जाते हैं हम|| " 
                                                               'नमन'

No comments:

Post a Comment