Tuesday, 21 December 2010

मित्रों पिछले काफी दिनों से कोई ग़ज़ल या नज़्म नहीं कही थी आज आप तक पहुंचा रहा हूँ...

कितनी वजहें हैं मोहब्बत की गिनाऊँ कैसे ?
चाहता हूँ तुझे लेकिन करीब आऊँ कैसे ?

मेरे दिल में हैं क्या ज़ज्बात तुम्हारी खातिर
चीर कर सीना उन्हें तुमको दिखाऊँ कैसे ?

चाँद जो आसमान से मेरे दिल में उतरा
उसकी हर बात मैं लोगों से बताऊँ कैसे ?

तुझको सज़दा करूँ पूजा करूँ तेरी ए सनम
चाह कर भी गले मैं तुझको लगाऊँ कैसे?

बड़ी मुश्किल से जलाये हैं मोहब्बत के चिराग
दिल जले या जले घर उनको बुझाऊँ कैसे ?

दिल और धड़कन ने बहुत पहले साथ छोड़ दिया
'नमन' ये बात मैं दुनिया पे जताऊँ कैसे ?
                                                                ' नमन'

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