Sunday, 12 December 2010

AANKHEN

  आज रविवार क़ी शाम ऑफिस में बैठे बैठे अचानक ऐसे लगा क़ी आज कुछ खाली खाली सी है ये शाम| क्या करूँ, सोचना शुरू किया और दिल ने  कहा चलो आज आँखों में झांक कर देखते हैं| फिर दिमाग  ने पूछा, अपनों क़ी आखों से शुरू करें या गैरों क़ी|  आवारा आँखों से शुरू करें या शर्मीली आँखों से! और ढूंढें तो क्या ढूंढे उन आँखों में| एक मशहूर शायर ने कहा है,  "तेरी आँखों में हमने क्या देखा , कभी कातिल कभी खुदा देखा"    अब ये पंक्तियाँ याद आने पर डर गया क़ी कंही कातिल से मुलाकात हो गयी तो ....! पहले आँखें तीर चलाती थी जिससे लोग घायल होते थे , अबतो आँखें गोली भी चलाने लगी हैं | कुछ सालों पहले अंखियों से गोली मारे गाना  लोकप्रिय हुआ तब से मैं और डर गया हूँ कि पहले तो सिर्फ घायल होने का खतरा था अब तो सीधे सीधे जान जाने कि बात है | फिर सोचा, कल्पना को पंख लगे तो याद आया कि आँखे वार करतीं हैं तो मनुहार भी करती हैं, आँखें गीत होती हैं ग़ज़ल होती हैं, आँखें आदमी कि मुकम्मल शक्ल होती हैं | आँखें कभी बरसती हैं तो कभी तरसती हैं | कभी डरती तो कभी डराती हैं| कभी समझती तो कभी समझाती हैं | आँखों में नूर होता है प्यार होता है, कभी इज़हार तो कभी इसरार होता है | आँखें कभी डरावनी तो कभी लुभावनी होती हैं, कभी रसीली तो कभी पनीली होती हैं | आँखें कभी अपनी तो कभी बेगानी होती हैं, कभी सीधी तो कभी सयानी होती हैं | आँखें कभी जली तो कभी बुझी बुझी होती हैं, कभी दीप बन जलती हैं कभी आग उगलती हैं| फिर खाली  दिमाग ने दौड़ना शुरू किया और याद आया क़ी आँखें झील सी गहरी भी होती हैं और मुझे तो तैरना भी नहीं आता , अगर उनमे डूब गया तो... ये कमबख्त पुलिस वाले तो सीधे सीधे आत्महत्या का केस लिख कर फाईल दाखिल दफ्तर कर देंगे|  कहेंगे किसने कहा था इस बेवकूफ को क़ी झील सी गहरी आँखों में झांक कर जान दे दे| | वहां तो पहले से "खतरा" का साईनबोर्ड लगा था फिर क्यों जान बुझ कर मरने गया| गालियाँ ऊपर से देगे  मेरी आत्मा को क़ी फंसा  दिया पंचनामे  और पोस्ट मार्टम के चक्कर में|  सो घबराया हुआ सा मैंने एक खूबसूरत महिला क़ी नशीली आँखों में झांक लिया|  और तबसे मै नशे के महासागर में गोते लगा रहा हूँ|  कभी मैंने लिखा था,
"तू मोहब्बत से यूँ न देख मुझे, आँख से दिल में उतर जाऊंगा" | अब बाहर आने का मार्ग नहीं मिल रहा है, और आंख है क़ी भांति भांति के कमाल कर रही है| ए चंचल आँख बड़ी
 गर्वीली है, जब भी जियादा हाथपैर  चलाता हूँ लाल पीली होने लगती है  ऐसे लगता है क़ी मैं उन आँखों में धंस रहा हूँ| अभी तक ये पता नहीं चला है क़ी ये कुंवारी आखें है या शादी शुदा! बड़ी सांसत  में जान फंसी हुयी है| पता नंही राहुक़ी किस दशा में इस शैतान आँख में फंस गया हूँ| बाहर आते ही आप सबको चिट्ठी जरूर लिखूंगा| तब तक आप सब कृपया  मेरी मुक्ति के लिए इश्वर, अल्ला , वाहेगुरु, जीसस , साईं बाबा इत्यादि
इत्यादि इत्यादि से प्रार्थना करें|
आपका....... "नमन"

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