Saturday, 10 July 2010

AMAN KI MAUT

३ जुलाई , कानपुर शहर और प्रधानमंत्री का कानपुर आय.आय. टी. की तरफ बढ़ रहा काफिला....
 और  इस आपा-धापी के बीच हुई "अमन" की मौत |
 निर्दोष- निष्पाप "अमन" की मौत,  असहाय-असमर्थ "अमन" की मौत, भोले भाले प्यारे बच्चे  "अमन" की मौत,  आखिर क्यों.......?
 प्रधानमंत्री कि सुरक्षा के नाम पर पुलिस बच्चे को उस रास्ते से अस्पताल जाने से रोक देती है जहाँ से प्रधानमंत्री का कारवां गुजरने वाला था|  | देरी की वजह से ज्यादा खून बह जाने से अस्पताल पहुंचते पहुंचते अमन कि मौत हो गयी| प्रश्न अनेक हैं पर जवाब नदारद
 पुलिस हमेशा  इंसान से जानवरों जैसा व्यवहार क्यों करती है? 
 पुलिस से हफ्ते लेकर उनकी नियुक्ति और उनका तबादला करने वाले नेता और मंत्री सब जानकर भी अनजान क्यों है?
राजनीति और राजनेता इतने अमानवीय कैसे होते जा रहे हैं?
क्या इतने अमानवीय होकर ये राक्षसों की श्रेणी में नहीं आ गएहै?
  क्यों अब तक वे पशुवत व्यवहार करने वाले पुलिसिये निलंबित नहीं किये गए?   क्यों  उन्हें  अभी तक हिरासत में नहीं लिया गया जो एक निर्दोष की मृत्यु के लिए जिम्मेदार  हैं?  एक घायल बच्चे को अस्पताल जाने से रोकना   क्या उसकी हत्या करने जैसा नहीं है?  केंद्र और राज्य सरकार क्यों उन सुरक्षा के नियमो को नहीं बदल रहे जिनसे आम आदमी को ऐसी त्रासदी से गुजरना पड़ता है?
                       मै प्रधानमंत्री को इस मृत्यु के लिए दोषी नहीं मानता परन्तु वे अगर उन पुलिस वालों के खिलाफ तुरंत कार्यवाही के लिए और उन्हें हिरासत में लेकर उनपर हत्या का  मुक़दमा चलाने के लिए राज्य सरकार को बाध्य नहीं करते तो इसके बाद होने वाली ऐसी सभी घटनाओं के लिए मैं उन्हें जिम्मेदार मानूंगा|
पूरे के पूरे सरकारी महकमे और पुलिस महकमे तक यह सन्देश जाना बेहद जरूरी है कि अगर इसके बाद ऐसा कुछ घटता है तो वे दण्डित किये जायेंगे|  अगर जरुरत है तो वी. आय. पी. सुरक्षा में जरुरी फेरबदल किये जाएँ और उसे अधिक संवेदनशील बनाया जाये|
 प्रस्तुत लाइने अपने काव्य संग्रह "ख़ामोशी कि जुबान" से उधृत कर रहा हूँ.... जो राजनेताओं और पुलिस के गठजोड़ द्वारा आम आदमी पर किये जा  रहे अत्याचार को केंद्र में रख कर लिखी गयी हैं........
      कभी नंगा करते हो
      मेरी बेटियों को
      सरेआम सडकों पर
      कभी पीट पीट कर
      लहू लुहान कर देते हो
      मेरे बच्चों को
      कभी बरसाते हो
      लाठियां और गोलियां
      मेरे मजदूर भाईयों पर
      अपने बूटों से कुचल देते हो
      हमारे सपने हमारी आकांक्षाएं
      और फिर
      हमारे खून से सुशोभित
      अपने शरीर को
      ढक लेते हो
      हमारा कफ़न चुरा कर
      सिलाये गए सफ़ेद वस्त्रों से|
                                           " नमन"

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