प्रस्तुत कविता मैंने अपने प्रिय मित्र श्री कमल मिश्र के लिए या कहें तो उनकी कोमल भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए लिखी थी, आशा है आप भी इससे जुड़ कर अपने गाँव की यात्रा कर सकेंगे...
वो नदियों के किनारे आज भी
हमको पुकारें हैं
वो पुरवाई हमें आज भी आवाज देती है
वो हरियाली वो झूमती गेंहू की बालियाँ
वो पीले फूल सरसों के हमें
अब भी बुलाते हैं
वो सारे खेत गन्ने के मटर के
और चने के आज भी हमको
हमारी यादों की गलियों में
आकर के सताते हैं
वो बचपन आज भी हमको
खड़ा आवाज देता है
वहीँ उस मोड़ पर रुक कर
जहाँ हम छोड़ आये थे
वो सारे पेड़ अब भी हैं वहीँ
इस आस में की तुम
कभी लौटोगे जब तो
आप पर खुशियाँ लुटाएंगे
वो धरती हर बरस
आँचल में अपने गुल खिलाती है
कभी धान कभी मक्का बाजरा
सब उगाती है
उसे भी है यही आशा
कभी तुम लौट आओगे
और धरती मां के कदमों में
अपना सर झुकाओगे
है तुम पर कर्ज माटी का
है तुम पर कर्ज पानी का
है तुम पर कर्ज मौसम का
और दादी की कहानी का
वो सारे दोस्त जिनके साथ तुम
खेले पले बढे
है उनके दिल में भी यह आस की
तुम लौट आओगे
गले मिलकर व्यथा अपनी
कहेंगे भी सुनेंगे भी
बिना मौसम के भी
आँखों के बादल बरस जायेंगे
चलो यादों में अपनी आज
हम बचपन तलक पहुंचे
अगर मौका मिला तो
गाँव तक भी पंहुच जायेंगे ............
नमन
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