Monday 30 May 2022

पलायन वाद

 

भारत में २०वीं शताब्दी के शुरु में एक नए दर्शन का उदय हुआ। यह उन्ही ब्राह्मणों के दिमाग़ की उपज था जो भारत पर बाहरी आक्रमण होने पर राजपूतों और अन्य लोगों के साथ मिलकर उसका सामना नहीं करते थे बल्कि मंदिरों में हवन और आरती करने लगते थे। ईश्वर को पुकारते थे कि वह उनकी रक्षा करेगा। इसी पलायनवादी विचारधारा की वजह से भी विदेशी आक्रान्ताओं ने भारत पर क़ब्ज़ा किया और हमें ग़ुलाम बनाया।
आज भी जब देश पर कोई आपत्ति आती है तो इस संगठन के लोग उसका सामना करने की जगह हवन, आरती, मंदिरों में घंटियाँ बजाने , थालियां पीटने और मोमबत्ती जलााने की बात करते हैं।
ये परशुराम या चाणक्य के वंशज नहीं थे। अपनी पारिवारिक, सामाजिक और देश की समस्याओं से भागकर अंग्रेजों की सहायता से ऐसे लोगों ने एक संगठन बनाया है जिसका नाम रखा "राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ"।
जब देश के अधिकांश ब्राह्मण स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी आहुतियां दे रहे थे तब यह संगठन ब्रिटिश सरकार की चाटुकारिता कर रहा था। कष्ट और संघर्षों से डरने वाले लोगों का यह समूह था। जो लोग अपने  पारिवारिक ज़िम्मेदारी को छोड़कर इस संगठन में शामिल हुए वे मूलत: पलायनवादी थे।
अंडमान ज़ेल में ब्रिटिश उत्पीड़न को बर्दास्त न कर पाने वाले सावरकर और उनके परिवार ने १० से अधिक माफीनामे ब्रिटिश सरकार को लिखे और ब्रिटिश सरकार की शर्तों पर जेल से रिहा हुए। स्वतंत्रता आंदोलन में जेल गए सावरकर में रिहा होने पर एक किताब लिखी "दि हिंदू"। इस किताब में उन्होंने अंग्रेजों का विरोध नहीं किया था बल्कि मुसलमानों की ख़िलाफ़त की थी।
उसी काल खंड हेडगेवार जो स्वतंत्रता आंदोलन में कुछ महीने के लिए जेल गए थे , वे भी रिहा हुए।
सावरकर की इसी पुस्तक "दि हिंदू" को अपना मूल दर्शन मान कर हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की।
इस पलायनवादी संगठन ने एक सामाजिक संगठन का चोला पहन रखा था और राजनैतिक रूप से अंग्रेजों के इशारे पर काम कर रहा था।
इसके राजनैतिक मुखौटे हिंदू महासभा ने न केवल भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध किया, बल्कि मोहम्मद अली जिन्ना के साथ मिलकर बंगाल , सिंध और नॉर्थवेस्ट प्राविंस में सरकार बनायी और सिंध असेंबली में अलग पाकिस्तान का बिल पारित किया। यही से भारत विभाजन की नींव पड़ी।डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी भी जिन्ना की बंगाल सरकार में मंत्री थे और भारत विभाजन का समर्थन कर रहे थे।
इन्हीं ताक़तों ने पूरे देश में शिविर लगाकर भारतीय युवकों को ब्रिटिश फ़ौज में भर्ती कराया ताकि वे बर्मा बॉर्डर पर जाकर नेताजी की आज़ाद हिंद फ़ौज से लड़ सके।
इस पलायनवादी संगठन की विचारधारा मानने वाले राजनैतिक दल फिर चाहे वह जनसंघ हो, जनता पार्टी हो या भारतीय जनता पार्टीजब भी सत्ता में आए इन्होंने देश की मूल समस्याओं से अपना मुँह फेर लिया क्योंकि इनके खून में ही पलायनवाद है।
1977 में जब जनता दल की सरकार बनी जिसमें अटल बिहारी बाजपेयी और आडवाणी जैसे नेता मंत्री थे तब इन लोगों ने पाकिस्तान में काम करने वाली RAW की विशेष unit को ख़त्म कर दिया। इस सरकार के इस काम के लिए पाकिस्तान ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी भाई देसाई को पाकिस्तान का सबसे बड़ा पुरस्कार "निशाने पाकिस्तान" दिया।
आज अगर देश आतंकवाद से जूझ रहा है तो उसका सबसे बड़ा कारण यह रहा कि हमने अपनी जासूसी संस्था को पाकिस्तान में पंगु कर दिया।
इनके पलायनवाद का आलम यह है कि देश पर आर्थिक दबाव आया तो मोरारजी भाई ने देश का सोना बेच दिया।
अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार में सरकारी होटल से लेकर सरकारी उद्योग को बेचे गए।
देश नहीं बिकने दूँगा का नारा लगाकर सत्ता में आए मोदीजी के आर्थिक कुप्रबंधन की वजह से सिर्फ़ कोरोना काल में देश को 50 लाख करोड़ रुपया का नुक़सान हुआ है यह रिज़र्व बैंक का कहना है।
अकर्मण्यता और पलायनवाद की हद यह है कि कांग्रेस द्वारा पूरे देश में जो रेल लाइन बिछाई और रेल्वे चलायी गई वह बनी बनायी रेलवे इनसे चलायी नहीं जा रही है और वे उसे बेच रहे हैं।
कांग्रेस ने टाटा से एयर इंडिया ख़रीदी थी और उसका विकास किया था।इनसे एयर इंडिया चलायी नहीं गई और इन्होंने टाटा को बेच दिया।
वे कांग्रेस द्वारा बनाए गए एयरपोर्ट बेच रहे हैं।
वे कांग्रेस द्वारा लगाए गए सरकारी उद्यम बेच रहे हैं।
इनके पलायनवाद की पराकाष्ठा यह है कि कोरोना बीमारी आने पर उसका सामना करने की जगह इन्होने लोगों से थालियां पिटवाई।
प्रधानमंत्री लोगों से मोमबत्ती जलाने की बात कर रहे थे।
चीन हमारी सीमा में घुसा आ रहा है परंतु उन्होंने उसकी तरफ़ से आंखें बंद कर ली है। "मूदहु आंख कतहुं कछु नाहीं" के दर्शन में विश्वास करने वाले इस संगठन ने पूरे देश में तबाही मचा रखी है।
पूरे देश को मिलकर इन पलायनवादी ताक़तों से लड़ना होगा वरना देश फिर से गुलाम हो जाएगा।
कोई ईस्ट इंडिया कम्पनी फिर से इस देश का अधिग्रहण कर लेगी।
जागो भारत -जागो!
जय हिंद!
नमन

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