मुझे चिंता हो रही है उन पढी-लिखी, सजी-धजी, सभ्य-सुसंस्कृत दिखाई पड़नेवाली और मोमबत्ती जलाने वाली महिलाओं की जो 2014 के पहले बात-बात पर डॉ मनमोहन सिंह की सरकार का इस्तीफ़ा माँग लेती थी।
इंडिया गेट से गेटवे ऑफ़ इंडिया तक प्रदर्शन करती थी।
कहाँ ग़ायब हो गई वे?
कहाँ गए वे दिन? कहाँ ?
आख़िर कहाँ?
उनकी गुमशुदगी की रिपोर्ट तक किसी थाने में दाख़िल नहीं हुई है।
क्या किसी अंतरराष्ट्रीय साज़िश का शिकार हो गई है वे?
नेशनल क्राइम ब्यूरो के रिकॉर्ड के अनुसार वर्ष 2019 में प्रतिदिन औसतन 100 दलित महिलाओं के साथ बलात्कार हुए हैं।मेरी चिंता है कि कहीं यह महिलाएँ बलात्कार का शिकार तो नहीं हो गई?
इनकी ज़ुबान बंद करने के लिए कहीं इनके साथ बलात्कार करके इनकी हत्या तो नहीं कर दी गई?
अगर यह महिलाएँ ज़िंदा होती तो अवश्य ही पूरे देश में मोमबत्तियाँ जलाकर जनांदोलन कर रही होती, सरकार का विरोध कर रही होती।
मोदी शासन के 7 साल में अब तक लगभग 2.75 लाख से ज़्यादा बलात्कार और हत्या हुई है।
मोदी शासन में 2.75 लाख महिलाओं के साथ हत्या और बलात्कार होने पर पूरे भारतीय समाज में सन्नाटा है।
इसकी न तो कोई दवा खोजी जा रही है और न कोई टीका।
स्त्रियों को प्रताड़ित होने और मरने के लिए छोड़ दिया गया है।
वे “बेटी बचाओ” का नारा देकर सत्ता में आए थे और तब से देश उनसे अपनी बेटियां बचाने में रात दिन एक कर रहा है।
भारत इतना कायर और नपुंसक इससे पहले कभी नहीं था। भारतीय नारी इतनी कमज़ोर इतिहास में कभी नहीं थी।
आज के पहले इतनी बड़ी संख्या में साधु वेशधारी कब बलात्कार और हत्या के आरोप में जेल में थे?
कब महिलाएँ भगवा वस्त्र पहने हुए लोगों को देखकर डर जाती थी?
कब साधु महात्माओं को यौन शोषण और यौन संबंधों की छूट थी?
आज खुलेआम बलात्कारियों के समर्थन में निकाले जाते हैं ज़ुलूस, मंत्री करते हैं अपराधियों का माल्यार्पण, महिलाएँ कर रही है बलात्कारियों का समर्थन और पुलिस एवम क़ानून अपनी नौकरी और जान बचाने में व्यस्त है।
"घर में बैठी दुर्गाओं को अब हथियार उठाना होगा
रावण हो या दु:शासन हो उनकी बलि चढ़ाना होगा।
गलियों-गलियों में चीखें गूंजेंगी अब इन नराधमों की
दुर्योधन का लहू द्रोपदी को केशों से लगाना होगा।
स्त्री शक्ति है , स्त्री भक्ति है , स्त्री काली है दुर्गा है
उसका आँचल छूने वाले हाथों को जल जाना होगा।
उठो दुर्गा महिषासुरमर्दिनी उठो खप्पर वाली काली
दुष्टों का बध करने का अब भार तुम्हें ही उठाना होगा।"
नमन
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