आज इस उम्र में मरने का नहीं डर हमको
फिक्र ए है कि हम जिएँ भी तो जिएँ कैसे?
जब पूरे मुल्क पर मौत बरसती हो तब
घर के साए में छिप के रहें तो रहें कैसे?
घर के साए में छिप के रहें तो रहें कैसे?
अगर किसी देश की संसद निकम्मी हो जाए
तब भी उस देश की अवाम चुप रहें कैसे?
तब भी उस देश की अवाम चुप रहें कैसे?
रहनुमा घर में बैठ करके लूडो खेल रहे
मौत का डर है उन्हें घर से वो निकलें कैसे?
मौत का डर है उन्हें घर से वो निकलें कैसे?
टीवी स्टूडियो में चीख रहे हैं मुर्दे
ज़हर दिलों में है तो दुवाएं निकलें कैसे?
ज़हर दिलों में है तो दुवाएं निकलें कैसे?
बदनुमा दाग है वो मुल्क की सियासत पर
फ़िक्र ये है कि उससे मुल्क बचाएँ कैसे?
फ़िक्र ये है कि उससे मुल्क बचाएँ कैसे?
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कोई तलाश किसी की चाहत नहीं होती
टूटे दिलों में किसी की हसरत नहीं होती।
टूटे दिलों में किसी की हसरत नहीं होती।
हमने उसे चाहा था उसने हमें नहीं
एकतर्फा मोहब्बत की क़ीमत नहीं होती।
एकतर्फा मोहब्बत की क़ीमत नहीं होती।
ढह गए सारे पुल जो उसके मेरे बीच थे
बेजान पत्थरों में मुरव्वत नहीं होती।
बेजान पत्थरों में मुरव्वत नहीं होती।
ज़िंदा हूँ मगर मौत है चारों तरफ मेरे
अब कोई पूजा कोई इबादत नहीं होती।
अब कोई पूजा कोई इबादत नहीं होती।
मैं खटखटाता रहा उसके दिल के किवाड़
पर उसके दिल में इश्क की आहट नहीं होती।
नमन
पर उसके दिल में इश्क की आहट नहीं होती।
नमन
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