हम मुर्दा समाज हैं
पत्रकार और समाचार माध्यम अब जनता के खिलाफ एक जुट है। इलेक्ट्रोनिक मीडिया युद्ध का ऐलान कर चुका है। यह युद्ध अशिक्षा, अन्याय, गरीबी, बेरोजगारी, बलात्कारों और आतंक के खिलाफ नहीं है। यह युद्ध भूख, बीमारी, शोषण , झूठ और भ्रम के खिलाफ भी नहीं है।
यह खिलाफ है सत्य के, श्रम के, विकास के, धर्म के, शांति के, ज्ञान के ।
यह खिलाफ है सत्य के, श्रम के, विकास के, धर्म के, शांति के, ज्ञान के ।
यह खिलाफ है एक आभासी दुश्मन के। एक ऐसे दुश्मन के खिलाफ, जो है ही नहीं। जिसका भ्रम खड़ा किया जा रहा है। जो सत्य बोलना चाहता है उसे देशद्रोही करार दे दिया जाता है। जो भी एक विचार विशेष के खिलाफ है वह देशद्रोही है।
स्वतंत्र भारत मे समय समय पर छात्रों ने सत्ता के खिलाफ संघर्ष किया। सियासतदानों को आईना दिखाने का काम किया और समाचार माध्यमों ने हमेशा सत्ता के खिलाफ छात्रों का साथ दिया। आज मीडिया कभी जेएनयू के छात्रों को देशद्रोही करार दे देती है तो कभी हैदराबाद यूनिवर्सिटी के छात्रों को देशद्रोही करार दे देती है । कभी बी एच यू की छात्राओं को देशद्रोही करार दे दिया जाता है तो कभी सारे अल्पसंख्यक छात्रों को देशद्रोही कर दिया जाता है ।
मीडिया सरकार का हथियार बन गया है । झूठ, भय और भ्रम फैलाने का औज़ार बन गया है मीडिया। भारतीय मीडिया विश्व के भ्रष्टतम मीडिया में से एक है। मीडिया किसान को नकली साबित कर रहा है। टीवी मीडिया प्रश्न करता है की किसान जीन कैसे पहन सकता है? किसान आंदोलन मे गाड़ी से कैसे आया ? किसान विमान में कैसे चल सकता है? किसान लाखों रुपए का ट्रैक्टर कैसे खरीद सकता है ?
किसान के पास करोड़ों रुपए के खेत हो सकते हैं, किसान का लड़का कलेक्टर हो सकता है, किसान का लड़का सेना में कर्नल हो सकता है, परंतु किसान ठीक-ठाक जूते नहीं पहन सकता । किसान अगर अच्छी शर्ट पहन ले तो किसान नहीं हो सकता। किसान अगर अच्छी जींस पहन ले तो किसान नहीं हो सकता है।
टीवी पत्रकार खुद को ईश्वर समझने लगा है, वह किसी को सुनना नहीं चाहते। वे लगातार बोले जा रहे हैं और किसी को बोलने नहीं देते। वे किसान के खिलाफ हैं, मजदूर के खिलाफ हैं, छात्रों के खिलाफ हैं, बलात्कार की पीड़िता स्त्रियों के खिलाफ हैं, बेरोजगार युवकों के खिलाफ हैं।
आवाज दबाई जा रही है । महात्मा गांधी ने सत्य के साथ प्रयोग किया था । अब सरकार झूठ के साथ प्रयोग कर रही है। टीवी पत्रकार रवीश कुमार का कहना है कि टीवी लोकतंत्र को खत्म करने का जरिया है। बात जब शिक्षा और बेरोजगार की होनी चाहिए तब मीडिया मंदिर और मस्जिद की बात करता है । जब बात किसानों की होनी चाहिए तब मीडिया पाकिस्तान की बात करता है। जब बात उद्योग और व्यापार की होनी चाहिए वह धर्म और संस्कार की बात करता है।
ऐसा नहीं हैं की सारे पत्रकार बिक गए हैं, सारी कलमे गिरवी रख दी गयी हैं, सारी आवाज़े खरीद ली गयी हैं।
अभी भी संघर्ष जारी है। कितने ही पत्रकारो, चिंतकों, लेखको की हत्या के बावजूद आज भी कलम के कुछ सिपाही सीना ताने खड़े हैं। सरकार और मीडिया मालिकों द्वारा प्रताड़ित और आतंकित किए जाने के बावजूद बहुत सी आवाज़े आज भी बुलंद हैं।
परन्तु जनता कहाँ है? वे लोग जिनका शोषण हो रहा है , कहाँ हैं? जिनकी बहन बेटियों के बलात्कारियों को मीडिया संरक्षण दे रही , वे कहाँ है? जिन किसानों ने संसद भवन पर नंगे होकर प्रदर्शन किया और मीडिया ने उनकी आवाज़ दबा दी, वे कहाँ हैं? जिनकी माब लिंचिंग हो रही है वे दलित और मुस्लिम कहाँ हैं? लोग महीनो बैंको की लाइन मे खड़े रहे, जिनमे से कई मर गए परंतु मीडिया 2000 के नोटों मे चिप्स लगे होने का समाचार देती रही, वे कहाँ हैं? जिन छात्राओं को बीएचयू के गेट पर प्रताड़ित किया गया , उनके परिवारजन कहाँ हैं?
आवाज़ दो की हम ज़िंदा कौम हैं! आवाज़ दो की हम लड़े बिना नहीं हारेंगे। आवाज़ दो की हम एक हैं।
ॐप्रकाश 'नमन'
website: namanom.in
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