Saturday 3 August 2019

हक़


निरीह/ निष्प्राण/ बेबस/
असहाय ज़िंदा लाशे/
झुकी हुई गर्दन/
सिले होंठ/ डबडबाई आँखें/
अधिकार/ कर्तव्य/ संघर्ष/
दायित्व आदि के ज्ञान से परे/

मानो लकवा मार गया है सबको/ 
तैयार हो चुकी है / 
तानाशाही के लिए ज़मीन/ उग आई हैं / 
धार्मिक उन्माद के रथ पर सवार/
 हत्यारों की टोलियाँ/बचे हैं / 
कुछ अर्बन नक्सल/
टुकड़े टुकड़े गैंग के कुछ लोग/
आत्महत्या के लिए उतारू /
कुछ पत्रकार/सत्य-अहिंसा- प्रेम /
और मानवता की बात करने वाले /
कुछ बेवकूफ़ नेता/
पर ज़्यादा देर नहीं बचेंगे/ये सब/
73 वें स्वतंत्रता दिवस की/पूर्व संध्या पर / 
प्रजातंत्र ले रहा है/ 
अंतिम सांस...फिर भी/
मैं प्रार्थना कर रहा हूँ/
तुम्हारे शुभ और मंगल की !
सिर्फ़ तुम्हारा
नमन 

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