Tuesday, 4 June 2019

देश का बंटवारा और महात्मा गांधी




9 जनवरी, 1915 को गांधीजी जब अफ्रीका से हिन्दुस्तान वापस आये, तब कांग्रेस का नेतृत्व लोकमान्य तिलक कर रहे थे। गोपालकृष्ण गोखले की अस्वस्थता के कारण प्रगतिशील, सुधारवादी शक्तियां कमजोर पड रही थी। लोकमान्य और गोपालकृष्ण गोखले से मिलने के बाद महात्मा गांधी ने पहले पूरे हिंदुस्तान का दौरा किया और फिर भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन मे अपनी सहभागिता शुरू की। 

कांग्रेस ने महात्मा गांधी के नेतृत्व मे स्वतंत्र भारत के लिए कई आंदोलन चलाये। इन आंदोलनों की सफलता ने महात्मा गांधी को राष्ट्रपुरुष के रूप मे स्थापित कर दिया । एक तरफ जहां गांधी हिन्दू - मुस्लिम एकता की बात करते थे, सभी भारतीयों को साथ ले कर चलने की बात करते थे वहीं मुस्लिम लीग जिसे अंग्रेजों का परोक्ष और अपरोक्ष दोनों समर्थन प्राप्त था सिर्फ मुसलमानो के हितों की बात करता था।

1925 में राष्टींय स्वयंसेवक संघ की स्थापना हुयी । अंग्रेजों ने इस संगठन का उपयोग बड़ी चालाकी से देश में हिन्दू मुस्लिम विद्वेष कायम करने और कांग्रेस को कमजोर करने में किया। आरएसएस ने सिर्फ गांधीजी को तथा मुसलमानों को नीचा दिखाने का काम किया। इन्होंने आजादी के एक भी आन्दोलन में कभी परोक्ष या अपरोक्ष रूप से भाग नहीं लिया। उनको गांधीजी का नेतृत्व मान्य नहीं था।  गांधीजी तथा कांग्रेस से अलग, स्वतंत्र रूप से कोई एक भी आजादी का आन्दोलन भी इन लोगों ने नहीं चलाया। विराट आन्दोलन की तो बात ही क्या कहें, कोई छोटा से छोटा आन्दोलन भी चलाने की इन देशाभिमानियों ने कभी हिम्मत नहीं की। सावरकर के अलावा मातृभूमि के इन लाडलों में से किसी ने समाज-सुधार का काम भी नहीं किया।

1937 में हिन्दू महासभा के अहमदाबाद-अधिवेशन में सावरकर ने द्विराष्ट्रवाद के सिद्धान्त का समर्थन किया था। इस तरह अप्रत्यक्ष रूप से इन्होने मुस्लिम लीग ने अलग पाकिस्तान के लिए प्रस्ताव का समर्थन कियाउससे तीन वर्ष पूर्व ही सावरकर ने हिन्दू और मुसलमान, ये दो अलग-अलग राष्टींयताए हैं, यह प्रतिपादित करने की कोशिश की थी। सावरकर ने कहा था की यदि हिंदुस्तान आज़ाद होता है तो आज़ाद हिंदुस्तान में मुसलमानों को संपत्ति रखने और वोट देने का कोई अधिकार नहीं होगा।  

भारत-विभाजन के लिए जितने जिम्मेदार मुस्लिम लीग तथा अंग्रेज हैं, उतने ही ज़िम्मेदार सावरकर, आरएसएस और डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी जैसे लोग भी हैं। आजाद भारत में हिन्दू ही हुकूमत करेंगे, ऐसा शोर मचाकर हिन्दुत्ववादियों ने विभाजनवादी मुसलमानों के लिए एक ठोस आधार दे दिया था।  मुहम्मद अली जिन्ना, हेडगेवार, गोलवलकर और श्यामाप्रसाद मुखर्जी आदि का उपयोग अंग्रेज़ चालाकीपूर्वक करते थे। गुरु गोलवलकर ने ऐडाल्फ हिटलर का अभिनन्दन किया, फिर भी अंग्रेजों ने उनको गिरफ्तार नहीं किया । गोलवलकर का उपयोग अंग्रेज गांधीजी के खिलाफ करते थे। 

उस समय की राष्ट्रीय राजनीति में यो लोग जयचन्द थे। जब दो साम्प्रदायिक ताकतें एक-दूसरे के खिलाफ काम करने लगती हैं, तब दोनों एक ही लक्ष्य की ओर अग्रसर होती हैं, और वह होता है आत्मविनाश का। हिन्दू सम्प्रदायवादियों ने ऐसा करके अंग्रेजों और भारत-विभाजन चाहने वाले मुसलमानों को फायदा ही पहु!चाया था। इन्होने 1942 की आजादी के आन्दोलन में कभी भाग नहीं लिया , उल्टे कई बार ब्रिटिश सरकार को पत्र लिखकर यह जानकारी भी दी थी कि हम आन्दोलन का समर्थन नहीं करते हैं।  

इन हिन्दूवादियों ने  विभाजन को रोकने के लिए क्या  किया ? सावरकर, हेडगेवार, गोलवलकर, गोडसे , डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने विभाजन के विरुद्ध क्यों नहीं आमरण उपवास किया ? क्यों नहीं इसके लिए उन्होंने व्यापक आन्दोलन चलाया ? जिस महात्मा गांधी को गालियां देते हों, उसी से देश बचाने की गुहार भी लगाते हो ? और जब गांधीजी अकेले पड जाने के कारण देश का विभाजन रोक नहीं पाये, तब आप उनको राक्षस मानकर उनका वध करने की साजिश रचते हो ? इसको मर्दानगी कहेंगे या नपुंसकता ?

भारत का विभाजन गांधी के कारण नहीं हुआ है, इन लोगों के कारण हुआ है। गांधीजी ने तो अन्त तक भारत विभाजन का विरोध किया था। गांधीजी ने अन्तिम समय तक इसके लिए जिन्ना के साथ लगातार बात की, उन्हे मनाने का अनथक प्रयास किया । भारत पाकिस्तान विभाजन और बंटवारे के समय हुई लाखों हिन्दू -मुसलमान और सिख हत्याओं के लिए सावरकर, गोलवलकर, हेगडेवार और डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी जैसे नेता ज़िम्मेदार थे।  

एक तरफ जब कांग्रेस पूरे देश में अंग्रेजों के खिलाफ 'भारत छोडो' आन्दोलन चला रही थी वहीँ दूसरी तरफ डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी मोहम्मद अली जिन्ना के साथ बंगाल में सरकार चला रहे थे और जिन्ना की मुस्लिम लीग सरकार में मंत्री थे।  जिन्ना के साथ इनका याराना इतना गहरा था की डॉ मुखर्जी ने बंगाल में विभाजन के पक्ष में जनमत कराया ताकि बंगाल का धर्म के आधार पर विभाजन किया जा सके।  यही भविष्य में पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) बनने का कारण बना. 

"रघुपति राघव राजा राम -पतित पावन सीताराम,  
ईश्वर अल्लाह तेरो नाम -सबको सम्मति दे भगवान"   
का भजन करने वाले गांधीजी सर्वसमावेशक उदार राष्ट्रवादी थे। उन्होंने समाज के सभी वर्गों और सब कौमों को अपनाया था, मात्र मुसलमानों को ही नहीं।

अँगरेज़ सिखों के लिए खालिस्तान और दलितों के लिए अलग राष्ट्र बनाने पर आमादा थे।  परन्तु महात्मा गाँधी ने डॉ बाबा साहेब आम्बेडकर को मनाया और देश का विभाजन रोका।  वहीँ पंडित नेहरु सिख नेताओ को मनाने में सफल रहे।  

प्रत्येक छोटी अस्मिता व्यापक राष्टींयता में मिल जाय, यह चाहते थे गांधीजी और कांग्रेस। उनमे यह दूरदृष्टि थी। महात्मा का यह वात्सल्य-भाव था सबके प्रति। बदनसीबी से तथाकथित क्षद्म हिन्दू राष्टंवादी अंग्रेजों की नज़र से देश को देखते थे और यह समझना ही नहीं चाहते थे और न आज समझना चाहते हैं

आप सबसे सिर्फ इतनी विनती- 
"अब न हिन्दू न मुसलमान की खातिर लड़िये
अगर लड़ना ही है तो इंसान की खातिर लड़िये।  
हिन्दुस्तान की खातिर लड़िये।  

नमन

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