Sunday 13 August 2017



मस्जिद की बात हो न शिवालों की बात हो
जनता की बात, उसके सवालों की बात हो.
पूजा की बात हो न अजानों की बात हो
हर आदमी के मुंह के निवालों की बात हो.
यदि हो सके तो गाय और गोबर को भुलाकर
बारिश में ढहती घर की दीवालों की बात हो.
भाषा और धर्म ,जाति की बातें बहुत हुई
इंसानियत की उम्दा मिसालों की बात हो.
बिके हुए अखबारों की चर्चा को छोड़ कर
ईमानदार चंद रिसालों की बात हो.

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ज़ख्म सह कर भी मुस्कराता हूँ
मैं मोहब्बत के गीत गाता हूँ.
वो बेवफा है मगर उसको
खुद बुला कर गले लगाता हूँ.
जिसने छीना है अमन चैन मेरा
उसको अपना खुदा बताता हूँ.
ज़ख्म मेरी पीठ पर जियादा हैं
पर ज़ख्म सीने के दिखाता हूँ.
जिन शहीदों से मुल्क है कायम
उनके कदमो में सिर झुकाता हूँ.
हैं मोहब्बत की पैदावार सभी
मैं मोहब्बत उन्हें सिखाता हूँ.

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