Wednesday 9 September 2015

महात्मा और हम

महात्मा और हम


आज कल देश में कुछ ऐसी ताकतें अधिक सक्रिय हो चुकी हैं जिनका न तो देश के स्वतंत्रता आन्दोलन में कोई योगदान रहा है न आधुनिक भारत के नव निर्माण में। यह ताकतें नकारात्मक सोच, अकर्मण्यता और निराशा की उपज हैं। यह वे लोग हैं जो अपनी लकीर लम्बी खीचने में असमर्थ हैं इसलिए दूसरो की लकीर मिटाने में सारा समय खर्च कर रहे हैं।

यही वह लोग हैं जो महात्मा गाँधी पर कीचड़ उछालने में दिन रात एक कर रहे हैं। एक व्यक्ति जिसके विचार न सिर्फ भारत बल्कि विश्व के कई दर्जन अन्य देशों की स्वतंत्रता का मन्त्र बनते हैं। पूरा विश्व जिसके सामने नतमस्तक है, उसकी अपने ही देश की कायर जमात द्वारा प्रोत्साहित एक पागल इन्सान हत्या कर देता है. 
और कुछ दशकों बाद आज उसी कायर जमात के नपुंसक वंशज अपने हत्यारे पुरखों का मंदिर बनाने पर लगे हैं और हम देख रहे हैं। 

इस ज़मात के महात्मा गाँधी से घृणा करने का सबसे बड़ा कारण जो मेरी समझ में आता है वह यह है की महात्मा 'सत्य' के समर्थक थे, सत्य के पुजारी थे, 'धर्म न दूसर सत्य समाना' कहने और मानने वाले महापुरुष थे और इस ज़मात की पूरी की पूरी इमारत झूठ, अन्धविश्वास और अकर्मण्यता पर टिकी है।  

एक ऐसी पार्टी जो खुद को हिन्दू वादी कहती है, राम को अपना आराध्य पुरुष बताते नहीं थकती है, दिन रात राम ही राम भजने वाले, राम राज्य के प्रवर्तक, अहिंसा के पुजारी महात्मा की कायरतापूर्ण हत्या को ' गांधी वध' का नाम देते हुए महात्मा को राक्षस साबित करने में रात दिन एक कर रहे हैं। 

'वध' शब्द राक्षसों , देशद्रोहियों या बुरी प्रवृत्तियों में लगे लोगों की हत्या के लिए उपयोग में लाया जाता है।

यही कर्म और विचारहीन ज़मात जिनके पास देश के लिए शहादत देने वाला अपना कोई नाम नहीं है, कोई बौना व्यक्तित्व तक नहीं है जिसका नाम लेकर वे खुद को गौरवान्वित करा सकें, महात्मा गाँधी के सामने उनके ही शिष्यों को खड़ा करके यह दिखाने की कोशिश कर रहे हैं की महात्मा गलत थे और उनके शिष्य सही, या महात्मा के उन शिष्यों को इतिहास में उनका सही स्थान नहीं मिला वगैरह वगैरह।

एक प्रश्न उठाया जाता है कि सरदार भगत सिंह, चन्द्रसेखर 'आजाद', बाबु सुबाष चन्द्र बोस को इतिहास मे उनका यथोचित स्थान नहीं मिला। मैं इससे असहमत हूँ। भारतीय जनता ने, भारत की अलग अलग सरकारों ने , भारतीय इतिहासकारों ने हमारे इन शहीदों को पूजा है, उन्हें उनका उचित सम्मान दिया है।  

हम सब भूल जाते हैं कि विचार महत्वपूर्ण हैं, व्यक्ति नहीं। भगत सिंह और आजाद खुद महात्मा के विचारो से प्रभावित होकर स्वतंत्रता आंदोलन मे कूदे थे। दोनो एक दशक से भी कम समय तक सक्रिय रह कर शहीद हो गए। मूल रूप से यह दोनों भी अहिंसा के ही पक्षधर थे। एक ने स्वतंत्रता आन्दोलन में अहिंसक आन्दोलनकारियों के दमन का बदला लेने के लिए हथियार उठाया और दुसरे ने आन्दोलन में गिरफ्तार होकर खुद कोड़े खाने के बाद. भगत सिंह ने जान लेने की अपेक्षा जान देकर भारत की जनता को जगाने की कोशिश की। पूरे स्वतंत्रता आंदोलन में शस्त्र उठाने वालों की संख्या कुछ सौ से जादा नहीं रही। इनमें से भी 50 से कम को ही शहादत मिली।

वहीं स्वतंत्रता आंदोलन में महात्मा लगभग 3 दशक से जादा सक्रिय रहे और उनकी विचारधारा को मानने वाले करोंडो लोग थे। लाखों लोगो ने आंदोलनों मे सक्रिय सहभाग लिया। अत: यह तुलना ही गलत है, बेमानी है। विभिन्न समाचार पत्रों में लिखे गये सरदार भगत सिंह के लेखों से स्पष्ट होता है की वे खुद महात्मा का कितना सम्मान करते थे , साथ ही वे पंडित नेहरु को देश के किसानो का सबसे बड़ा नेता मानते थे।

अब दूसरी बात है सुबाष बाबू और महात्मा। सुबाष बाबू महात्मा के आजीवन शिष्य रहे। यह बात अलग है कि काँग्रेस की कितनी ही बैठकों में पं नेहरू और सुबाष बाबू दोनो महात्मा से असहमत होते थे। महात्मा और इन दोनों की उम्र मे एक पीढी का अंतर था। सुबाष बाबू तो उम्र मे पंडित नेहरू से भी कुछ साल छोटे थे। परंतु सुबाष बाबू महात्मा और पं नेहरू का जितना सम्मान करते थे वह कम ही देखने को मिलता है। 

देश छोड कर जर्मनी जाने के बाद सुबाष बाबू ने ही बर्लिन रेडियो से पहली बार महात्मा को 'राष्ट्र पिता' की उपाधि दी, आजाद हिंद फौज मे महात्मा गाँधी ब्रिगेड और पंडित नेहरू ब्रिगेड बनाई। यह उदाहरण स्पष्ट करते हैं कि महात्मा अतुल्य थे और हैं, उनसे किसी की तुलना नहीं हो सकती।

आज हमारे कुछ नेता विदेशों में जाकर अपने ही देश की बदनामी कर रहे हैं. यह दुर्भाग्यपूर्ण है और उनका यह कृत्य देशद्रोह के बराबर है. वे न केवल उनकी बौद्धिक अक्षमता को प्रकट करता है बल्कि उनके असहाय होने का भी द्योतक है।

राष्ट्र कवि गुप्त जी की पंक्तियाँ हैं- 

जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है
वह नर नहीं, है पशु निरा और मृतक के सामान है।

महात्मा गाँधी का अपमान देश का अपमान है। देश है तो हम हैं। अपने पूर्वजो का अपमान करके किसी पीढ़ी, किसी देश का भला नहीं हुआ है। अतः कृपया अनर्गल प्रलाप बंद करें, झूठ से किसी का भला न हुआ है न होगा.

'नमन'

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