Tuesday 22 September 2015

नेताजी की शहादत और राजनीती

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बीजेपी का भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में जिनका अपना कोई योगदान नहीं था, न तो उनके अपने कोई राष्ट्रीय नायक नहीं रहे।  यही कारण है की वे हमेशा कांग्रेस के नायकों को एक दूसरे के खिलाफ खड़ा करने की कोशिश में लगे रहते हैं. सरदार पटेल विरुद्ध पंडित नेहरु, महात्मा गाँधी विरुद्ध भगत सिंह , महात्मा गाँधी विरुद्ध नेताजी सुबाष चन्द्र बोस वगैरह वगैरह।
आज कल फिर पंडित नेहरु विरुद्ध नेताजी की चर्चा जोर शोर पर है। कुछ लोग नेताजी से संबंधित लगभग ६४ फाईले जो पश्चिम बंगाल सरकार के पास हैं और लगभग १३० फाईलें जो केंद्र सरकार के पास हैं उन्हें सार्वजनिक करने की मांग करते रहे हैं।  बीजेपी जब विपक्ष में थी तब उसके नेता भी इन फाईलों को सार्वजनिक करने की मांग करते थे, हालाँकि उन्होंने बीजेपी के बाजपेयी शासन में खुद इन गोपनीय फाईलों को सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया था। यह भ्रम पैदा किया जा रहा था की जैसे ही ये फाईलें सार्वजनिक होंगी, पंडित नेहरु की प्रतिमा को इतना बड़ा धक्का लगेगा की कांग्रेस के पैर के नीचे से ज़मीन खिसक जाएगी।
अंततः पश्चिम बंगाल सरकार ने इस भानुमती के पिटारे को खोल ही दिया। राज्य सरकार के पास सुरक्षित गोपनीय फाईले जनता के लिए उपलब्ध हो गयी.
 फिर वही हुआ जो होना था, 'खोदा पहाड़ निकली चुहिया' .  फाईलों में सिवाय कुछ अखबारों की कतरनों और तत्कालीन सरकारों द्वारा नेताजी के भाइयों के परिवार की निगरानी जैसी सूचना के अलावा कुछ ठोस नहीं निकला। वह निगरानी भी उनकी सुरक्षा के लिए थी या मित्र राष्ट्रों की जासूसी संस्थाओं से उनके बचाव के लिए यह स्पष्ट नहीं है।
अब मोदी सरकार पर केंद्र के पास जमा १३० से जादा गोपनीय फाईलों को सार्वजनिक करने का दबाव बन रहा है।  बीजेपी जानती है की एक बार ए फाईले जनता को प्राप्त हो गयी तो उसके हाथ से अफवाह और भ्रम फ़ैलाने का एक और हथियार निकल जायेगा।
पूरे विश्व और मित्र राष्ट्रों ने १९४५ में ही स्वीकार कर लिया था की १८ अगस्त १९४५ की विमान दुर्घटना में सुबाष बाबू की मौत हो गयी थी, परन्तु अपने निहित स्वार्थों के लिए कुछ राजनैतिक तत्व उनके जिंदा होने की बात लगातार करते रहे हैं।
सुगता बोस जो नेताजी के भांजे (Grand Nephew) हैं अपनी पुस्तक 'हिज मॅजेस्टीज अपोनेंट'  में लिखा है की १८ अगस्त १९४५ को विमान दुर्घटना में नेताजी की मृत्यु की पूरी तरह से जांच के बाद ही अंग्रेज़ों ने शरतचन्द्र बोस  और नेताजी के अन्य परिवारवालों सितम्बर १९४५ के मध्य में को जेल से रिहा किया था। उन्होंने अपनी पुस्तक में लिखा ही है की ब्रिटिश सरकार ने दिल्ली से खुपिया अफसरों की दो टीमो को  Finney और Devies के नेतृत्व में Saigaon और Taipei भेजा था. Finney के साथ बंगाल के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी K P De और Devies  के साथ H K Roy ताइवान गए थे।  इन दोनों टीमो ने विमान दुर्घटना में नेताजी की मृत्यु की संस्तुति की थी।
बाद में अगस्त १९४६ में भारतीय पत्रकार हरिन शाह ने ताइवान जाकर Nanmon Military Hospital की नर्स Tsan Pisa जिसने विमान दुर्घटना के बाद सुबाष बाबू  की देखभाल की थी उससे बात की थी।  हरिन शाह ने भी १८ अगस्त १९४५ नेताजी की मृत्यु की पुष्टि की थी।
१९ अक्तूबर १९४६ को ब्रिटिश कैप्टेन Alfred Raymond Turnur ने Taipai हॉस्पिटल के सर्जन कप्तान Yoshimi Taneyoshi का बयान रिकार्ड किया जिसमे उन्होंने बताया की हॉस्पिटल में भरती होने के लगभग ४ घंटे बाद तक नेताजी अर्ध चेतन अवस्था में थे , उसके बाद उनकी तबियत बिगड़ी और उनकी मृत्यु हो गयी।  Yoshimi शत प्रतिशत आश्वस्त थे की वे नेताजी ही थे।
स्वतंत्रता के बाद  सन १९५६ में पंडित नेहरु ने ३ सदस्यीय शाहनवाज कमिसन की स्थापना की , जिसमे शाहनवाज खान  के साथ साथ सुबाष बाबू के सगे भाई सुरेश चन्द्र बोस और S N Maitra भी सदस्य थे।
इस कमीसन ने Tokyo जाकर नेताजी के साथ विमान में सफ़र कर रहे और विमान दुर्घटना में जिंदा बचे जापानी सेना के लेफ्टिनेंट कर्नल Shino Nonogoki, मेजर Tara Kono, मेजर Inaho Takahashi, कप्तान Kiekichi से बात की।  साथ ही लेफ्टिनेंट कर्नल Tadeo Sakai जो उस समय टोक्यो से बाहर ड्यूटी पर थे का लिखित बयांन भी इस कमिसन ने एकत्र किया.
नेताजी के साथ विमान में यात्रा कर रहे जनरल हबीबुर्रहमान ने पाकिस्तान से दिल्ली आकर शाहनवाज़ कमीसन के सामने अपना बयान दर्ज कराया. इन सबने नेताजी की मृत्यु की पुष्टि की।  दुर्घटना के बाद जनरल हबीबुर्रहमान और नेताजी हॉस्पिटल में एक दुसरे की बगल की खाट पर भरती हुए थे।
पुनः एक बार १९७० में जनता के दबाव में इंदिरा गाँधी ने नेताजी की मृत्यु की जांच के लिए G. D. Khosala  कमीसन बनाया. कमीसन ने विमान दुर्घटना में जिंदा बचे ४ जापानी सैन्य अधिकारिओं लेफ्टिनेंट कर्नल Shino Nonogoki, मेजर Tara Kono, मेजर Inaho Takahashi, और लेफ्टिनेंट कर्नल Tadeo Sakai से मिल कर नेताजी की मौत की पुष्टि की।
ब्रिटिश ख़ुफ़िया एजेंसियों, मित्र राष्ट्रों की सेनाओं , शाहनवाज कमीसन, खोसला कमिसन आदि की जांच रिपोर्ट के बाद भी न जाने क्यों नेताजी के परिवार के कुछ लोग किसी पर विश्वास नहीं कर पा रहे हैं। नेताजी की मृत्यु के लगभग ४० वर्षों बाद भारत सरकार ने नेताजी की विमान दुर्घटना में मृत्यु की जांच के लिए मुखर्जी कमीसन की स्थापना की।   मुखर्जी कमिसन ने ताइवान जाकर वहां के अधिकारीयों से विमान दुर्घटना के बारे में पूँछ तांछ की।  अधिकारीयों ने कहा की हमारे पास उस दुर्घटना के कोई दस्तावेज मौजूद नहीं हैं। इसी बात को केंद्र में रख कर मुखर्जी कमिसन ने रिपोर्ट दे दी की विमान दुर्घटना में नेताजी की मौत संदेहास्पद है। उन्होंने यह नहीं सोचा की द्वितीय विश्वयुद्ध जब रोज सैकड़ों विमान तबाह हो रहे थे, ऐसे में एक और विमान दुर्घटना के दस्तावेज कोई देश ४-५ दशक तक क्यों संभाल कर रखेगा।
ब्रिटिश और भारतीय अधिकारीयों द्वारा १९४५ में की गयी जाँच, भारतीय पत्रकार की रिपोर्टिंग, १९५६ में शाहनवाज कमीसन की जांच, जिसमे नेताजी के सगे भाई भी सदस्य थे, खोसला कमिटी की जांच सबको इस एक रिपोर्ट ने झुठला दिया।
सोशल मिडिया पर कुछ मूर्ख पंडित नेहरु को नेताजी की मौत का जिम्मेदार बताते हैं।  जबकि सच यह है की १९४५ में नेताजी की विमान दुर्घटना में मौत हुयी और पंडित नेहरु १९४२ से १९४५ तक भारत छोडो आन्दोलन में जेल में बंद थे।
अब जैसे जैसे गोपनीय फाईलें खुलेंगी, अफवाहें और भ्रम का पर्दाफास होगा और लोगों को सच्चाई का पता चलेगा।  तो पूर्ण सत्य का इंतज़ार करते हैं।  तब तक के लिए विदा.......
'नमन'

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