Tuesday, 17 March 2015

वो लड़की

चश्मा लगाने वाली
वो लड़की
डर गया था मै उससे
वो धीरे धीरे
मुझसे मुझी को छीन रही थी ...

अपनी हर अभिव्यक्ति के साथ
वो छा जाती थी
मेरे दिल और दिमाग पर
दिमाग तो खैर है नहीं मेरे पास
न कभी था
पर दिल
उस पर जैसे धतूर का
नशा छा जाता था
उसकी रचनाये
कविता या जो कुछ भी वो लिखती थी
लिखती है
सीधे सीधे निगल जाते थे मुझे
मेरे अस्तित्व को
मेरी सोच को ...

जन्म से ही कायर मैं
लड़ नहीं सका उससे
उसके शब्दों से
उसकी भावनाओं से
कभी मिला नहीं मैं उससे
कभी बात नहीं की
आमने सामने या दूरध्वनी पर
बिना मिले
बिना एक शब्द बोले
जीत लिया था उसने मुझे
मेरे पूरे व्यक्तित्व को
मेरी निज़ता को ...

दूर भाग आया हूँ मैं उससे
ध्वस्त कर दिए हैं सारे सेतु
दूर से ही प्रणाम करता हूँ उसे
उसके शब्दों को
उसकी भावनाओं को
नमन-नमन-नमन..... ‘नमन’

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