Sunday 8 February 2015

छद्म-राष्ट्रवाद

                                             छद्म-राष्ट्रवाद
नस्लवादी अन्धराष्ट्रवादी पागलपन अक्सर सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का चोला पहनकर सामने आता है। भारत में हिन्दू साम्प्रदायिक अन्धराष्ट्रवाद भी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का जामा पहनकर ही सामने आ रहा है। इस विचारधारा के पास न तो देश के विकास की कोई दूरदृष्टि होती है न भविष्य की कोई धनात्मक संकल्पना. यह समूह उसी ढंग से सोचता है जैसे हिटलर सोचता था. हिटलर की इसी सोच, इसी अवधारण ने जर्मनी में यहूदियों की सामूहिक हत्या करवाई. यही सोच महान जर्मनी के पतन का कारण बनी.
बहादुराना संघर्ष से इनका कुछ लेना देना नहीं है. इनकी इसी कायरतापूर्ण विध्वंसकारी सोच ने महात्मा गाँधी की हत्या कर दी और अब यही सोच उनकी हत्या को सही साबित करने पर लगी हुयी है. महात्मा गाँधी की हत्या को “गाँधी वध” कहना और नाथूराम गोडसे का गुणगान भी इसी सोच का हिस्सा है.

यह ज़मात स्त्री को सिर्फ बच्चे पैदा करने की मशीन समझती है. इनका मानना है की देश और समाज के निर्माण में स्त्री की सहभागिता या उसका कोई उत्तरदायित्व नहीं है. वह दुय्यम दर्जे की नागरिक है.
ये लोग राष्ट्रवाद की ओट में हमेशा किसान और मजदूर का शोषण करते हुए पूँजीपति वर्ग की सेवा करते हैं। राष्ट्र से उनका मतलब पूँजीपति वर्ग और उच्च मध्यम वर्ग हैं. अन्य वर्गों की स्थिति अधीनस्थ होती है और उन्हें सिर्फ उच्च पूंजीपति वर्ग की आँख मूँद कर सेवा करनी होती है, यही उनका एकमात्र कर्तव्य और दायित्व होता है।  

इनका प्रजातंत्र से भी दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं है. इनके संगठनों में जनतांत्रिक मूल्यों के लिए कोई स्थान नहीं है. भारतीय जनतंत्र को इस विचारधारा से सावधान रहना होगा, वरना भविष्य में हम देश में नाज़ीवाद को जन्म दे देंगे.
‘नमन’

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