Thursday 20 March 2014

इलेक्ट्रोनिक मीडिया है किसानो का दुश्मन न.1



इलेक्ट्रोनिक मीडिया है किसानो का दुश्मन न.1 

हम आईने हैं दिखाएंगे दाग चेहरों के
जिसे खराब लगे सामने से हट जाए।

इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने लगातार भारतीय किसानो और मजदूरों के हितों के खिलाफ प्रचार किया है। यह लोग एक तरफ किसानो की आत्महत्या का मामला ज़ोर शोर से उठाते हैं। पर टीवी मीडिया के किसी चैनल ने कभी इस बात की मुहिम नहीं चलाई की किसानो को उनके उत्पादों का सही मूल्य मिले। 

उसके उल्टे जब भी कभी किसानो को उनके उत्पादों का मूल्य थोड़ा अधिक मिला, तो किसान और मजदूर विरोधी इन चैनलों ने देश की 60% जनसंख्या के खिलाफ जंग छेड़ दी।  

40% से कम शहरी जनसंख्या, न केवल किसानो के उत्पादों का सही दाम उन्हे देने के लिए तैयार नहीं है, बल्कि उनका पानी, उनकी ज़मीन, उनके जंगलों का भी दोहन कर रही है। 

टीवी पत्रकारिता के तथाकथित महान चिंतकों ने लगातार भारतीय किसानो और मजदूरों के हितों की अनदेखी की है, बल्कि औद्योगिक घरानों के दबाव मे किसानो और मजदूरों के साथ अन्याय किया है।

टीवी मीडिया के बे-गैरत पत्रकारों की यह वही जमात है की गेहूं का दाम रु 20/-किलो होने पर चिल्लाती है और रेस्तरां मे 25रु की 25 ग्राम की रोटी को मंहगा नहीं कहती। 30रु किलो के चावल के भाव पर आसमान सिर पर उठाएगी और 150रु प्लेट का चावल रेस्तरां मे खाएगी। किसा 25 रु किलो सब्जी का भाव होने पर हल्ला गुल्ला शुरू पर 150 रु प्लेट सब्जी पर रेस्तरां मे किसी के पास कैमरा लेकर खड़ी नहीं होगी। 

शर्म नहीं आती इस जमात को। अपना खून पसीना एक कर के रोटी कमाने वाले किसान और मजदूर का दुख इन्हे दिखाई नहीं देता और शहरी आदमी के सामने, उसी शहरी आदमी के सामने जो अपने परिवार के साथ1 शाम होटल के खाने पर पूरे महीने के राशन के बिल से जादा खर्च कर देता है ये बाईट लेने खड़े हो जाते हैं। 
आइए थोड़ा असलियत देखें.....   



उदाहरण के लिए BJP के NDA शासन(1998-2004) मे एक तरफ डीजेल के भाव 21.73% प्रतिवर्ष के दर से बढ़ाए गए, केरोसिन के भाव 42.92% प्रति वर्ष के हिसाब से बढ़ाए गए,    घरेलू गैस के दाम 15.44% प्रति वर्ष की दर से बढ़ाए गए,  

तो वहीं दूसरी तरफ किसानो के अनाज, कपास, गन्ना और तेलहन के खरीद समर्थन मूल्य नहीं बढ़ाये गए। पर मीडिया ने कोई हो हल्ला नहीं किया। 


·        बीजेपी शासन मे गेंहू का सरकारी खरीद मूल्य सिर्फ रु 6.30/-प्रति किलो  था। कांग्रेस सरकार ने गेंहू का समर्थन मूल्य लगभग ढाईगुना बढ़ा कर रु 13.50/- प्रति किलो कर दिया। ताकि किसान कोउसके उत्पाद का जादा दाम मिल सके।
·        बीजेपी शासन(2004) मे चावल का खरीद मूल्य सिर्फ रु 5.50/प्रति किलो  था जिसे वर्तमान कांग्रेस सरकार ने बढ़ा कर सन-2014 मे रु 13.45/ प्रति किलो कर दिया है।
·        BJP शासन(२००४) मे जवारी का खरीद मूल्य मात्र रु 6/- प्रति किलो था उसे वर्तमान कांग्रेस सरकार ने ढाई गुना बढ़ा कर रु 15/- प्रति किलो कर दिया है।
·        बीजेपी शासन(2004) मे गन्ने का खरीद मूल्य रु 73/- प्रति क्विंटल था जिसे कांग्रेस सरकार ने 3 गुना बढ़ा कर रु 220/-प्रति क्विंटल कर दिया है।
·        BJP शासन(२००४) मे कपास का खरीद मूल्य मात्र रु 1925/-प्रति क्विंटल था, जिसे वर्तमान कांग्रेस सरकार ने 2 गुना बढ़ा कर रु 3900/- प्रति क्विंटल कर दिया।
* BJP शासन(2004) मे जवारी का खरीद मूल्य मात्र रु 600/- क्विंटल था , जिसे वर्तमान कांग्रेस सरकार ने ढाई गुना बढ़ा कर रु 1500/- क्विंटल कर दिया। 
·        BJP शासन(2004) मे ग्रामीण मजदूरों की मजदूरी रु 48/- प्रति दिन थी। आज 2014 मे कांग्रेस शासन ने यह मजदूरी लगभग 3 गुना बढ़ा कर रु 138/- प्रति दिन कर दी।
·        बीजेपी ने अपने 1998 से 2004 के कार्यकाल मे किसानो के उत्पादों का सरकारी खरीद मूल्य नहीं बढ़ाया और शहरी मतदाता को लुभाने के लिए मंहगाई न बढ़ाने के नाम पर किसानो का शोषण किया।


·        बीजेपी शासन(1998-2004) मे किसानो को उनके उत्पादों के उचित मूल्य न मिलने से धीरे धीरे उनपर कर्ज़ बढ़ता गया और 2004-2005 आते आते स्थिति विस्फोटक हो चुकी थी। सरकारी सहायता के अभाव मे किसानो ने बड़ी संख्या मे आत्महत्या की।
·        कांग्रेस ने शासन मे आने पर न केवल छोटे और मझोले किसानो का 70,000 करोड़ रु एक मुश्त माफ किया बल्कि पूरे देश के किसानो को साहूकारों के ऋण से मुक्ति दिलाने के लिए बीजेपी शासन से 7 गुना जादा ऋण दिया।
·        आज पूरे देश के किसानो को 2004 के बीजेपी शासन के 1.04 लाख करोड़ के लोन के मुक़ाबले कांग्रेस ने 7लाख करोड़ का ऋण बैंको की मार्फत दिया है, ताकि किसानो को साहूकारों के चंगुल से मुक्ति मिले
पर इससे टीवी मीडिया को क्या लेना देना? किसान मरे तो मरे, मजदूर मरे तो मरे वे थोड़ी इन्हे स्पोंसर करते हैं। 

क्रमशः ----   नमन

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