Sunday 8 December 2013

भारत और सांप्रदायिक हिंसा का इतिहास


                 --भारत और सांप्रदायिक हिंसा का इतिहास


भारत मे सांप्रदायिक हिंसा का इतिहास काफी पुराना है। जब हम सांप्रदायिक हिंसा की बात करते हैं तो अक्सर हमारे दिमाग मे सिर्फ हिन्दू- मुस्लिम हिंसा की बात आती है। भारत के संबंध मे यह सच भी है की भारत मे हालांकि समय-समय पर हिन्दू-क्रिश्चियन हिंसा भी होती रही है और कुछ एक बार हिन्दू –सीख हिंसा भी भड़की है परंतु हिन्दू-मुस्लिम हिंसा का अनुपात सबसे जादा है।

जहां आम जनता इन दंगों और फ़सादों से त्रस्त रही है, वहीं शासकों, राजनैतिक पार्टियों और धार्मिक सगठनों ने इस धार्मिक वैमनस्य का बार-बार फायदा उठाया है। बांटो और राज करो की राजनीति ने हमारे समाज को बांटने मे कोई कसर बाकी नहीं रखी है।

आज हिन्दू संगठन हैं, मुस्लिम संगठन हैं, क्रिश्चियन मिशन हैं, सिख संगठन हैं, अगर नहीं तो वह है मानवीय संगठन या इंसानियत का संगठन। हिंदुओं का डर दिखा कर मुसलमानों को इकट्ठा रखो, क्रिश्चियन मिशनरी के धर्म परिवर्तन का डर दिखा कर हिंदुओं के नेता बनो, सत्ता के लिए हिन्दू और सिख जिनमे सैकड़ों सालों से रोटी- बेटी का संबंध रहा है भेद पैदा करो। पुराने जख्म ताज़ा रखो। नए जख्म का भय दिखाओ।

आज जब कुछ हिन्दू संगठन और तथाकथित हिन्दू समर्थक राजनैतिक पार्टियां बार-बार पाकिस्तान का नाम लेती हैं तो बड़ी कोफ्त होती है। आज़ादी के बाद से लेकर आज तक हजारों छोटे बड़े हिन्दू –मुस्लिम सांप्रदायिक हिंसा के मामले सामने आए हैं। ये हिंसा क्या पाकिस्तान ने कराई है? क्या कभी किसी गुजरात के दंगे, मुजफ्फर नगर के दंगे, बिहार के दंगे, मुंबई के दंगे , उत्तर प्रदेश के दंगे मे पाकिस्तान का हाथ मिला? क्या अयोध्या का राम मंदिर (बाबरी ढांचा) पाकिस्तान ने गिराया? क्या गोधरा मे ट्रेन किसी पाकिस्तानी ने जलायी?

जवाब है नहीं। ये सब हमारे धार्मिक और राजनैतिक नेताओं द्वारा लगातार बोया जा रहा धार्मिक उन्माद, झूठ और भ्रम का विष है जो कभी हत्याओं तो कभी दंगों की शक्ल ले लेता है। बोया पेड़ बबूल का, आम कहाँ से होय? हमारे अपने हिन्दू और मुस्लिम संगठन आग लगा कर पाकिस्तान को अपनी रोटी सेंकने का मौका देते हैं। पाकिस्तान जब पाकिस्तानी मुसलमानों की हिफाजत नहीं कर पा रहा है तो वो भारतीय मुसलमानो की क्या हिफाज़त करेगा। पाकिस्तान मे हर साल हिंदुस्तान से कई गुना जादा लोग आतंकवादी घटनाओं मे मारे जाते हैं। ये तब जब पाकिस्तान की आबादी भारत की 1/5 हिस्सा भी नहीं है।

एक राजनैतिक पार्टी लगातार महात्मा गांधी और पंडित नेहरू पर इल्ज़ाम लगाए जा रही है, की 1947 मे उन्होने सब मुसलमानो को पाकिस्तान क्यों नहीं भेज दिया? महात्मा गांधी की हत्या इन्ही कायर विचारधारा के लोगों ने की।
ऐ जलील कौम तेरी ज़िल्लत भी हमने देख ली
सफ़ीना तोड़ दिया जब तुझे किनारा मिला ।

मेरा प्रश्न है की यदि सब मुसलमान 1947 मे पाकिस्तान चले गए होते तो क्या भारत मे शांति होती? हिन्दू वादियों के अनुसार नेपाल एक हिन्दू राष्ट्र है, क्या वहाँ माओ वाद और अन्य उग्रवादी संगठन हत्याए नहीं कर रहे हैं? क्या उसमे भी पाकिस्तान का हाथ है? क्या तमिल और सिंघली जो मूलतः हिन्दू और बौद्ध हैं श्रीलंका मे नहीं लड़े ? भारत मे 1947 से लेकर आज तक हिंसा मे उतनी मौतें नहीं हुयी हैं जितनी छोटे से पड़ोसी श्रीलंका मे 2 दशकों मे हुयी। वहाँ कौन सा मुसलमान या पाकिस्तान उन्हे लड़ा रहा है?

सत्ता और कुर्सी के लिए धर्म की अफीम का उपयोग शासक, राजनेता और धर्मगुरु सदियों से करते आए हैं और आज भी कर रहे हैं। दक्षिण एशिया और यूरोप मे धार्मिक हिंसा का कई सदियों का इतिहास रहा है। क्रिश्चियन विरुद्ध इस्लाम की इस पूरी धार्मिक लड़ाई मे उन्हे विनाश के अलावा कुछ नहीं मिला।
अतः आप सब से एक विनम्र प्रार्थना....
अब न हिन्दू न मुसलमान की खातिर लड़िए
अगर लड़ना है तो इंसान की खातिर लड़िए।
हिंदुस्तान की खातिर लड़िए।
नमन

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