Saturday 7 December 2013

भारतीय स्त्री का मानसिक और शारीरिक शोषण


---- भारतीय स्त्री का मानसिक और शारीरिक शोषण---

निर्भया कांड के बाद आई जन जागृति ने भारत सरकार पर दबाव बनाया की वह स्त्री पर हो रहे अत्याचारों, विशेषकर उसके शारीरिक और मानसिक शोषण के खिलाफ सख्त कानून बनाए और ऐसे अपराधों के मुकदमों मे एक सीमित समय के अंदर न्यायपालिका को फैसला सुनाने की बाध्यता हो।
(यहाँ मैंने न्यायपालिका द्वारा न्याय देने की जगह फैसला सुनाने जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया है, क्योंकि मेरा अपना अनुभव है की न्यायपालिका के आधे से जादा निर्णयों मे आम आदमी के साथ न्याय नहीं किया जाता , बस एक फैसला सुना दिया जाता है।)

भारत सरकार ने सख्त कानून बनाया और इस कानून का आम जनता द्वारा स्वागत भी किया गया। लेकिन इस कानून को बनाते समय इस कानून के भावी दुरुपयोग को नज़रअंदाज़ किया गया। यहाँ मैं पिछले 4-5 महीनों मे मेरे अपने शहर के दो महाविद्यालयों मे घटी दो अलग-अलग घटनाओं की तरफ मेरे मित्रों का ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा...

1-  पहली घटना, एक महाविद्यालय मे लाइब्रेरियन और एक छात्रा के बीच हुये विवाद को लेकर घटी। लाइब्रेरियन ने जब छात्रा को उसके व्यवहार के लिए चेतावनी दी तो उस छात्रा ने फोन करके अपनी माँ को बुला लिया। छात्रा की माँ जब कालेज पहुंची तो लाइब्रेरियन प्रिंसिपल के कमरे मे था सो छात्रा की माँ सीधे प्रिंसिपल कक्ष मे घुस गयी और लाइब्रेरियन को मारने दौड़ी। लाइब्रेरियन बचने के लिए प्रिंसिपल जो स्वयं एक महिला हैं की कुर्सी के पीछे जा छिपे और प्रिंसिपल ने लाइब्रेरियन को बचाने का प्रयास किया। इस पर छात्रा की माँ ने स्वयं अपने कपड़े फाड़ डाले और चिल्लाने लगी की लायब्रेरियन ने उस पर हाथ डाला।

वो तो भला हुआ की प्रिंसिपल कक्ष मे कैमरा लगा हुआ था जिसकी रिकार्डिंग प्रिंसिपल ने स्थानीय पुलिस स्टेशन को सौंपी जिसमे छात्रा की माँ अपने कपड़े स्वयं फाड़ती हुयी साफ देखी गयी, वरना आज वह लाइब्रेरियन और शायद प्रिंसिपल भी पुलिस की हवालात मे होते। महाविद्यालय की बदनामी होती और लोग अपनी बहन और बेटियों को वहाँ शिक्षा देने मे हिचकिचाते।  

यह घटना कुछ प्रश्न उपस्थित करती है... क) अगर महाविद्यालय के प्रिंसिपल के केबिन मे कैमरा न लगा होता तो क्या होता? ख) यदि कैमरा किसी कारणवश बंद होता तो क्या होता? ग) यदि उस समय बिजली चली गयी होती तो क्या होता? घ) अगर यह घटना किसी ऐसी जगह होती जहां कैमरा नहीं हो तो क्या होता? च) अगर प्रिंसिपल स्वयं महिला न होकर पुरुष होता तो क्या होता?

यहाँ मैं आपको बताना चाहूँगा की यह सब करने के बाद और कैमरा की रिकार्डिंग देखने के बाद भी उस महिला पर पुलिस ने कोई FIR दर्ज नहीं की है।
अब दूसरी घटना पर आते हैं...

2-  एक अन्य महाविद्यालय मे परीक्षा के समय जब एक छात्रा, जिसने अपने हाथ पर उत्तर लिखे हुये थे को जब निरीक्षक ने नकल करने से रोका और परीक्षा हाल उसका हाथ पकड़ अन्य वरिष्ठ निरीक्षकों को दिखाया तो वह लड़की उस निरीक्षक के खिलाफ FIR लिखाने पुलिस स्टेशन पहुंच गई। ऐसे मे अब कौन सा निरीक्षक किसी छात्रा को नकल करने से रोकेगा और कैसे रोकेगा ?
आज कब कोई महिला बदला लेने के लिए किसी पुरुष पर कब आरोप लगा दे, कह नहीं सकते। कार्यालयों मे अब पुरुष अधिकारी अपनी कनिष्ठ महिला सहयोगियों से सशंकित हैं ?

ऐसा नहीं है की यह सब अब शुरू हुआ है, यह पहले भी होता रहा है परंतु नया कानून आने से अब हर पुरुष अपने को कटघरे मे खड़ा पा रहा है। अचानक ऐसा लगने लगा है की पूरा का पूरा पुरुष वर्ग ही असभ्य है, बलात्कारी है, पशुवत व्यवहार करने वाला है।

हिंदुस्तान मे लगभग 50करोड़ वयष्क पुरुष हैं और पूरे देश मे प्रतिवर्ष लगभग 45 हज़ार के आसपास स्त्री पर अत्याचार या बलात्कार के मामले दर्ज़ होते हैं। एक ढंग से देखें तो पाएंगे 0.001% से भी कम पुरुष ऐसे मामलों मे संदिग्ध पाये गए हैं। परंतु आज मीडिया और स्त्री संगठन पूरे के पूरे पुरुष वर्ग को दोषी करार देते नज़र आते हैं। हिन्दू संस्कृति मे स्त्री लक्ष्मी, सरस्वती, शक्ति सभी रूपों मे पूजित है, भोग्या नहीं। वह देवी है। शास्त्रों मे कहा गया है यत्र नारियस्तु पूज्यन्ते- रमन्ते तत्र देवता: । स्त्री और पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं, आप सबसे विनती है की इन्हे एक दूसरे का दुश्मन बना कर पेश न करें। प्रेम एक बड़ी पवित्र भावना है, ईश्वरीय गुण है, उसे पवित्र ही रहने दें। 
'naman'

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